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गूलर के पेड़ की पहचान

आयुर्वेदिक गूलर लंबी आयु वाला वृक्ष है। इसका वनस्पतिक नाम फीकुस ग्लोमेराता रौक्सबुर्ग है। यह सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। यह नदी−नालों के किनारे एवं दलदली स्थानों पर उगता है। उत्तर प्रदेश के मैदानों में यह अपने आप ही उग आता है। गूलर का पेड़ 6 मीटर से 12 मीटर तक ऊंचा होता है। गूलर का तना, मोटा, लम्बा, तथा टेढ़ा होता है। गूलर की छाल लाल व मटमैली रंग की होती है। गूलर के पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे, 1.5 से 3 इंच चौडे़, नुकीले, चिकने और चमकीले होते हैं। इसके फूल अक्सर दिखाई नहीं देते हैं।
गूलर के फल गर्मी के मौसम में 1 से 2 इंच व्यास के गोलाकार अंजीर के फल के समान होते हैं तथा ये गुच्छों में होते हैं। गूलर के कच्चे फल हरे रंग और पके फल लाल रंग के होते हैं। गूलर के फल को थोड़ा सा दबाते ही वह फूट जाता है और इसमें सूक्ष्म कीटाणु भी पाये जाते हैं। गूलर के पेड़ के सभी अंगों में दूध भरा होता है और यदि इसके किसी भी भाग को धारदार चीज से काटते हैं तो उस भाग से दूध निकलने लगता है। इसका दूध जब शुरू-शुरू में निकलता है तो वह सफेद रंग का होता है लेकिन हवा के संपर्क में आते ही कुछ ही देर में पीला हो जाता है। इसके दूध का उपयोग औषधियों के रूप में किया जा सकता है क्योंकि इसमें रोगों को ठीक करने की शक्ति होती है।