संपर्क : 7454046894
मिलिये पक्षी प्रेमी अर्जुन से, जिन्होंने कराई हजारों गौरेया की वापसी
![मिलिये पक्षी प्रेमी अर्जुन से, जिन्होंने कराई हजारों गौरेया की वापसी मिलिये पक्षी प्रेमी अर्जुन से, जिन्होंने कराई हजारों गौरेया की वापसी](https://in.hayatbar.com/sites/in.hayatbar.com/files/%E0%A4%97%E0%A5%8C%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AF%E0%A4%BE.jpeg)
प्राकृतिक आवास दिलाना सबसे अहम
अर्जुन कुमार (51 वर्ष) का कहना है कि गौरैया हमारे आसपास पलने वाली चिड़िया है। एक तरह से हम उन्हें पालतू भी कह सकते हैं क्योंकि ये इंसानी बस्तियों के आसपास रहना पसंद करती हैं। इस माहौल में वे बड़ी शिकारी पक्षियों से खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं। वे अकसर हमारे कच्चे घरों के बीच बनी जगहों में अपने घोंसले बना लेती थीं या आसपास के पेड़ों पर अपना ठिकाना तलाश लेती थीं। लेकिन अब पक्के मकानों और घटते पेड़ों के चलते उनके लिए घोंसले बनाने के लिए कोई जगह नहीं बचती।
साथ ही, खेतों में बिखरे दाने और छोटे-छोटे कीड़े उनका प्रिय आहार हुआ करता है। लेकिन अब बदलते वातावरण में उन्हें खाने की चीजें भी नहीं मिल रही हैं। गौरैयों के लिए यह स्थिति अकाल की तरह है। इसी कारण वे हमसे लगातार दूर जा रही हैं। अनुकूल माहौल न मिलने के चलते अब उनके अंडे भी सुरक्षित नहीं रह पाते, जिसके कारण उनकी संख्या में गिरावट आई है।
मोबाइल टावर्स की तरंगें नहीं है समस्या
दिल्ली के चांदनी चौक के रहने वाले अर्जुन कुमार ने बताया कि अगर हम अपने घरों में कृत्रिम रूप से उनके लिए घोंसले बना दें तो गौरैया को अंडे देने की जगह मिल जाएगी। अंडे देने का उनका समय अगस्त से नवंबर के बीच होता है। ऐसे में अगर हम उन्हें 'जगह' उपलब्ध करवा दें, तो वे हमारे पास वापस आ सकती हैं। उन्होंने बताया कि वे दिल्ली के हजारों घरों में अब तक घोंसले बना चुके हैं और इन घरों में गौरैयों को वापस आते हुए और अपने अंडों को पालते हुए देखा है।
मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगों को अर्जुन कुमार बड़ी समस्या नहीं मानते, जिसे चिड़ियों की घटती संख्या से जोड़कर देखा जाता है। उनका कहना है कि उनका व्यक्तिगत अनुभव रहा है कि मोबाइल टावरों के कारण चिड़ियों की संख्या पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ा है। हालांकि उनका कहना है कि इस मुद्दे पर और अधिक रिसर्च किए जाने की जरूरत है।
बेकार डब्बों को बना सकते हैं घर
उन्होंने बताया कि गौरैया का आवास बनाने के लिए वे किसी महंगी चीज का सहारा नहीं लेते, बल्कि घरों में बेकार पड़े डिब्बों में गौरैया के आने-जाने के लिए एक छोटा छिद्र बनाकर रख देते हैं। ये बॉक्स थोड़ा बड़े साइज के होने चाहिए। वे बॉक्स में कुछ कॉटन और सूखी पत्तियां रख देते हैं। इस बॉक्स को जमीन से आठ से दस फीट की ऊंचाई पर रख देते हैं जहां ये सुरक्षित रह सकें। इन घोंसलों पर पानी नहीं पड़ना चाहिए। इनके आसपास थोड़ी दूर पर पीने के लिए पानी का एक पात्र भी रख देते हैं।
कुछ दूर पर उनके खाने की चीजें जैसे उबले चावल, पोहा या रोटी के टुकड़े बिखेरने वाले अंदाज में रख दी जानी चाहिए। इससे गौरैयों को यह उनका प्राकृतिक आवास जैसा महसूस होता है और वे इनमें वापस आ जाती हैं।
क्या कहते हैं पक्षी विशेषज्ञ
नेचर फॉरएवर सोसाइटी के पक्षी विशेषज्ञ दिलावर खान का कहना है कि गौरैया के घोंसले बनाने का काम भी पूरी वैज्ञानिकता के साथ किया जाना चाहिए। इन घोंसलों में उन्हें पूरी तरह प्राकृतिक एहसास होना चाहिए अन्यथा गौरैया इनसे दूर ही रह सकती हैं। इनके लिए सबसे बेहतर स्थान कम इंसानी हलचल वाली बालकनी हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि गौरैया खेती के बिखरे दाने खाकर रहती थी, लेकिन विदेशों में अब एक बड़े भूभाग पर एक ही किस्म की खेती का प्रचलन तेजी से बढ़ा है।
इससे खेती की बहुलता कम हुई है, जिससे गौरैया को खाने के लिए चीजें नहीं मिल रही हैं। गौरैया कीड़ों को खाना पसंद करती है, लेकिन शहरों में ढकी नालियों के चलते अब गौरैयों के लिए कीड़ों की उपलब्धता में भी काफी कमी आई है। जिससे इनका जीवन असहज हुआ है।
क्या है स्थिति
गौरैया की सैकड़ों प्रजातियां दुनिया के हर कोने में पाई जाती हैं, लेकिन प्राकृतिक स्थलों के बदलाव के कारण अब इनकी संख्या तेजी से कम हो रही हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया की हर आठवी चिड़िया की प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी संस्था कार्नेल लैब की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1966 की संख्या के आधार पर गौरैयां की संख्या में 84 फीसदी तक की कमी आई है।
इंग्लैंड में गौरैयां की संख्या अब आधी से भी कम रह गई है। इस मुद्दे पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रतिवर्ष 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने 2010 में गौरैया के ऊपर डाकटिकट जारी किया था और दिल्ली सरकार की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 2012 में गौरैया को राज्य पक्षी का दर्जा दिया था।