राग यमन (कल्याण)

राग यमन
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राग: 

इस राग को राग कल्याण के नाम से भी जाना जाता है। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से होती है अत: इसे आश्रय राग भी कहा जाता है। जब किसी राग की उत्पत्ति उसी नाम के थाट से हो तो उसे कल्याण राग कहा जाता है। इस राग की विशेषता है कि इसमें तीव्र मध्यम और अन्य स्वर शुद्ध प्रयोग किये जाते हैं। ग वादी और नि सम्वादी माना जाता है। इस राग को रात्रि के प्रथम प्रहर या संध्या समय गाया-बजाया जाता है। इसके आरोह और अवरोह दोनों में सातों स्वर प्रयुक्त होते हैं, इसलिये इसकी जाति सम्पूर्ण है।

आरोह- सा रे ग, म॑ प, ध नि सां अथवा ऩि रे ग, म॑ प, ध नि सां ।
अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा ।
पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा ।
प्रथम पहर निशि गाइये गनि को कर संवाद ।
जाति संपूर्ण तीवर मध्यम यमन आश्रय राग ॥

विशेषतायें
मुग़ल शासन काल के दौरान, मुसलमानों ने इस राग को राग यमन अथवा राग इमन कहना शुरू किया।
इस राग के दो नाम है यमन अथवा कल्याण। यमन और कल्याण भले ही एक राग हों मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है जिसे राग यमन-कल्याण कहते हैं जिसमें दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं। यमन कल्याण में शुद्ध म केवल अवरोह में दो गंधारों के बीच प्रयोग किया जाता है जैसे- प म॑ ग म ग रे, नि रे सा है। अन्य स्थानों पर आरोह-अवरोह दोनों में तीव्र म प्रयोग किया जाता है, जैसे- ऩि रे ग म॑ प, प म॑ ग म ग रे, नि रे सा।
कल्याण और यमन राग की चलन अधिकतर मन्द्र ऩि से प्रारम्भ करते हैं और जब तीव्र म से तार सप्तक की ओर बढ़ते हैं तो पंचम छोड़ देते हैं। जैसे- ऩि रे ग, म॑ ध नि सां इसलिये इसका आरोह दो प्रकार से लिखा गया है। दोनो प्रकारों में केवल पंचम का अंतर है और कुछ नहीं।
इस राग में ऩि रे और प रे का प्रयोग बार बार किया जाता है।[1]
इस राग को गंभीर प्रकृति का राग माना गया है। इसमें बड़ा और छोटा ख्याल, तराना, ध्रुपद, तथा मसीतख़ानी और रज़ाख़ानी गतें सभी सामान्य रूप से गाई-बजाई जाती है।
इस राग को तीनों सप्तकों में गाया-बजाया जाता है। कई राग सिर्फ़ मन्द्र, मध्य या तार सप्तक में ज़्यादा गाये बजाये जाते हैं, जैसे राग सोहनी तार सप्तक में ज़्यादा खुलता है।
कल्याण राग को आश्रय राग भी कहा जाता है। इसका कारण यह है कि जिस थाट से इसका जन्म माना गया है।

 

इस राग के दो नाम है यमन और कल्याण.

यमन और कल्याण भले ही एक राग हों, मगर यमन और कल्याण दोनों के नाम को मिला देने से एक और राग की उत्पत्ति होती है, जिसे राग यमन-कल्याण कहा जाता  हैं, जिसमें दोनों मध्यम प्रयोग किये जाते हैं.  यमन कल्याण में शुद्ध “म” केवल अवरोह में दो गंधारों के बीच प्रयोग किया जाता है… जैसे- प म॑ ग म ग रे, नि रे सा .  अन्य स्थानों पर आरोह-अवरोह दोनों में तीव्र म प्रयोग किया जाता है… जैसे- ऩि रे ग म॑ प, प म॑ ग म ग रे, नि रे सा.

आरोह अवरोह को आसान शब्दों समझते हैं. ये तो हम जानते ही हैं कि सात सुर होते हैं. सा, रे, ग, म, प, ध, नी. शास्त्रीय संगीत के सभी राग इन्हीं सुरों के ‘कॉम्बिनेशन’ से बनते हैं. किसी एक राग में कोई एक सुर नहीं लगता तो किसी राग में कोई दूसरा सुर. कई रागे ऐसी भी हैं जिनमें सभी सात सुर लगते हैं. राग यमन भी एक ऐसा ही राग है जिसमें सभी सात सुर लगते हैं. आरोह और अवरोह को एक सीढ़ी की तरह मान सकते हैं. आरोह का मतलब है कि सुरो कि सीढ़ी का ऊपर जाना और अवरोह का मतलब है कि उसी सीढ़ी से वापस उतरना. वादी, संवादी और पकड़ का मतलब ये होता है कि आप जैसे ही इन नियम कायदों में बंध कर गाएंगे शास्त्रीय संगीत के जानकार तुरंत इस बात को पकड़ लेंगे कि आप कौन सा राग गा रहे हैं.

बताते चलें कि मधुबाला को राग यमन से बहुत प्यार था, इतना प्यार कि वो खुद को ‘मिस यमन’ कहलाना पसंद करती थीं.1960  में आई फिल्म ‘बरसात की एक रात’ सुपरहिट हुई थी, उसके म्यूजिक डायरेक्टर रोशन को भी इस फिल्म के संगीत के लिए खूब सराहा गया था. इस फिल्म के हित होने के बड़ा कारण गाने को राग यमन पर कम्पोज किया गया था. राग यमन की यही खूबसूरती है कि हिंदी फिल्मों को कई सुपरहिट गाने मिले हैं. राग यमन की खूबी यह  है कि इसकी सभी कॉम्पजिशन ‘लाइट म्यूजिक’ में ये बेहद लोकप्रिय होते हैं. फिल्मी गानों से निकलकर जब बात गजलों में आती है, तब राग यमन पर आधारित ये गजलों में सबसे पहले याद आती है, गजल सम्राट उस्ताद मेहदी हसन की. उर्दू के मशहूर शायर अहमद फराज ने लिखा था कि एक और गजल देखिए, जो आपको राग यमन की ‘पॉप्युलैरिटी’ को समझाएगी. फरीदा खानम की आवाज में गाई गई गजल आज भी तमाम महफिलों की शान होती हैं, जिनका जिक्र हर किसी की जुबान पर होता है  “आज जाने की जिद ना करो”.  लोकप्रियता का आलम ये है कि करन जौहर ने अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में इस गजल को अरिजित सिंह और शिल्पा राव ने भी गाया था. गजल ही क्या कव्वाली के तौर पर भी राग यमन की ये कॉम्पजिशन सुपरहिट है. फिल्म ‘दिल ही तो है’ में नूतन पर फिल्माई गई ये कव्वाली आज भी सुपरहिट है.

कहा जाता है कि मुस्लिम संगीत जानकारों के अनुसार इस राग यमन को इमन कहना शुरू किया, लेकिन इसका प्राचीन नाम कल्याण है. आज इस राग को दोनों नामों से जाना जाता है, यमन और कल्याण. कल्याण के कई प्रकार मिलते हैं- शुद्ध कल्याण, पूरिया कल्याण, जैत कल्याण वगैरह. इसमें बड़ा खयाल, छोटा खयाल, तराना, ध्रुपद वगैरह गाए जाते हैं. एक तो शाम का राग है और दूसरे बहुत ही मधुर है, इसलिए संगीत समारोहों में ये राग खूब सुनने को मिलता है.

 

 

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Comments

  • सरस्वती चंद्र से- चंदन सा बदन, चंचल चितवन
  • राम लखन से- बड़ा दुख दीन्हा मेरे लखन ने
  • चितचोर से- जब दीप जले आना
  • भीगी रात से- दिल जो न कह सका वो ही राज़े दिल
  • अनपढ़- जिया ले गयो जी मोरा सांवरिया ....

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