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पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा समय तक जीवित रहती हैं महिलाएं आइये जानें कैसे

शोध में बताया गया है कि महिलाओं को यह लाभ ज्यादातर जैविक तथ्यों के चलते मिलता है, जैसे अनुवांशिकी या हार्मोन खासकर एस्ट्रोजन, जो संक्रामक बीमारियों के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. अमेरिका के डरहम में ड्यूक यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर वर्जीनिया जारुली के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कहा, "हमारे परिणाम जीवित रहने में लिंग भिन्नता की पहेली में एक और अध्याय जोड़ते हैं." नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के जर्नल प्रोसीडिंग में प्रकाशित इस शोध की टीम ने मृत्यु दर आंकड़ों का विश्लेषण किया था
पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक मजबूत हैं और अपने पुरुष समकक्षों के मुकाबले ज्यादा दिन तक जीवित रहती हैं. एक नए शोध में यह बात कही गयी है, जो अब तक की इस धारणा को चुनौती देता है कि महिलाएं कमजोर होती हैं.
नतीजे यह भी दिखाते हैं कि महिलाएं न सिर्फ आमतौर पर पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा समय तक जीवित रहती हैं, बल्कि खराब परिस्थितियों जैसे महामारी, अकाल में भी उनके जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है. महिलाओं की जीवन प्रत्याशा इसलिए ज्यादा होती है क्योंकि प्रतिकूल परिस्थिति में नवजात बालकों की अपेक्षा नवजात बालिकाओं के जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है. हालांकि, जब दोनों लिंगों के लिए मृत्यु दर ज्यादा थी, तब भी महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा औसतन छह महीने से लेकर लगभग चार साल तक ज्यादा जीवित रहती थी.
आइए और जाने कैसे
महिलाएं कमजोर होती हैं.नतीजे यह भी दिखाते हैं कि महिलाएं न सिर्फ आमतौर पर पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा समय तक जीवित रहती हैं, बल्कि खराब परिस्थितियों जैसे महामारी, अकाल में भी उनके जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है. महिलाओं की जीवन प्रत्याशा इसलिए ज्यादा होती है क्योंकि प्रतिकूल परिस्थिति में नवजात बालकों की अपेक्षा नवजात बालिकाओं के जीवित रहने की संभावना ज्यादा होती है. हालांकि, जब दोनों लिंगों के लिए मृत्यु दर ज्यादा थी, तब भी महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा औसतन छह महीने से लेकर लगभग चार साल तक ज्यादा जीवित रहती थी.
शोध में बताया गया है कि महिलाओं को यह लाभ ज्यादातर जैविक तथ्यों के चलते मिलता है, जैसे अनुवांशिकी या हार्मोन खासकर एस्ट्रोजन, जो संक्रामक बीमारियों के खिलाफ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है. अमेरिका के डरहम में ड्यूक यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर वर्जीनिया जारुली के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने कहा, “हमारे परिणाम जीवित रहने में लिंग भिन्नता की पहेली में एक और अध्याय जोड़ते हैं.” नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के जर्नल प्रोसीडिंग में प्रकाशित इस शोध की टीम ने मृत्यु दर आंकड़ों का विश्लेषण किया था.
आइसलैंड दुनिया में सबसे ज्यादा लैंगिक समानता वाला देश है. शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसरों और राजनीतिक सशक्तिकरण के क्षेत्रों में मौजूद अंतर के विश्लेषण के आधार पर यह बात कही गई. दूसरी तरफ, यमन की स्थिति इस मामले में सबसे खराब है.दुनिया भर में महिलाओं का सालाना औसत वेतन 12 हजार डॉलर है जबकि पुरुषों का औसत वेतन 21 हजार डॉलर है. डब्ल्यूईएफ का कहना है कि वेतन के मामले में समानता कायम करने के लिए दुनिया को 217 वर्ष लगेंगे.वेतन में अंतर को पाटने के लिए ब्रिटेन की जीडीपी में अतिरिक्त 250 अरब डॉलर, अमेरिका की डीजीपी में 1,750 अरब डॉलर और चीन की डीजीपी में 2.5 ट्रिलियन डॉलर डालने होंगे.2017 के दौरान महिला और पुरुषों के बीच प्रति घंटा मेहनताने का अंतर 20 वर्ष के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया. सरकारी आकंड़ों के मुताबिक एक फुलटाइम पुरुष कर्मचारी ने महिला कर्मचारियों की तुलना में 9.1 प्रतिशत ज्यादा वेतन पाया.