ध्यान -:पूर्णिमा का चाँद

पूर्णिमा का चाँद

रात पूरे चाँद के नीचे बैठकर देखा, कभी टकटकी लगाकर आकाश में पूर्णिमा के चाँद को देखा।कुछ तुम्हारे भीतर भी आंदोलित होने लगता है।वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य सबसे पहले समुद्र में ही पैदा हुआ। पहला रूप जीवन का मछली है।हिन्दुओं की बात ठीक मालूम होती है कि परमात्मा का पहला अवतार मत्स्य अवतार,मछली का अवतार।वैज्ञानिक विकासवाद भी इसे स्वीकार करता है। और उसके आधार हैं।अब भी मनुष्य के शरीर में जल का अनुपात अस्सी प्रतिशत है।उसमे वे ही रासायनिक द्रव्य हैं जो सागर के जल में हैं।
तुम्हारे भीतर साधारण जल नहीं है,ठीक समुद्र का जल है।माँ के पेट में भी,बच्चा जब पैदा होता है तो माँ के पेट में समुद्र के जल जैसी अवस्था होती है।छोटा सा कुंड बन जाता है समुद्र के जल का,उसी में बच्चा तैरता।पहले मछली की तरह...।
पूर्णिमा का चाँद जब होता है तो तुमने सागर में उत्तुंग लहरें उठती देखीं,और तुम भी तो अस्सी pratishat सागर का जल हो।पूरे चाँद को देखकर तुम्हारे भीतर भी तरंगे उठती होंगीं, उठती हैं।यह जानकार तुम हैरान होओगे कि सर्वाधिक लोग पागल पूर्णिमा की रात को होते हैं।सर्वाधिक लोग बुद्धत्व को भी उपलब्ध पूर्णिमा की रात्रि को होते हैं।
पूर्णिमा की रात बड़ी अद्भुत है।
अगर चाँद का इतना प्रभाव होता है,इतने दूर चाँद का इतना प्रभाव होता है कि किसी को पागल कर दे, कि किसी को बुद्धत्व को पहुंचा दे।
तो क्या उन लोगों की हम बात करें जिनके भीतर का चाँद प्रगट हो गया हो,जिनके भीतर की बदलियाँ कट गई हों, जो भीतर पूर्ण गए हों, जिन्होंने चैतन्य की पूर्णता को पा लिया हो।वे ही सतगुरु हैं उनके भीतर से प्रार्थना का जन्म होता है।,,गुरु परताप साध की संगति

   ..ओशो....

 

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