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लिवर की अनूठी अदलाबदली

तीन महीने पहले तक नाईजीरिया में रहनेवाला 18 महीने का डीके और मुम्बई की 44 वर्षीय प्रिया आहुजा एक ही समस्या से जूझ रहे थे.
दोनों के लिवर ख़राब हो चुके था और दोनों को लिवर ट्रांसप्लाट की ज़रुरत थी .
लेकिन यहां सबसे बडी दिक्कत आ रही थी ब्लड ग्रुप के मैचिंग की. दरअलस डीके का ब्लड ग्रुप बी था और उसकी मां चिन्वे का ए, डीके के पिता का ब्लड ग्रुप बेटे से मिलता तो था लेकिन उनके लिवर का आकार बडा था.
वहीं प्रिया आहुजा का ब्लड ग्रुप ए था और उनके पति हरीश आहुजा का बी.
ये दोनो ही मामले सर गंगा राम अस्पताल के डाक्टरों के सामने आए और उन्होंने काफ़ी विचार-विमर्श करने के बाद एक नायाब तरीक़ा निकाला- स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट यानि दानदाताओं की अदला बदली.
डीके लिए दानदाता बने हरीश आहुजा और प्रिया के लिए डीके की मां चिन्वे.
ऐसी सर्जरी भारत में पहली बार हुई और शायद पुरी दुनिया में ये अपनी तरह का पहला मामला है.
इस सर्जरी में 35 डाक्टरों की टीम ने चार ऑपरेशन थियेटरों में 16 घंटे तक ऑपरेशन किया.
पच्चीस जून को ये सर्जरी हुई और इसके प्रमुख सर्जन डा ए एस सोईन के मुताबिक ये काफी चुनौतीपूर्ण था.
उनका कहना था, ``स्वैप लिवर ट्रांसप्लाट में चारों शरीरों पर एक साथ काम करना पडता है और इसमें अलग किस्म की कुशलता और तकनीक की तो ज़रुरत होती ही है, डर ये भी रहता है कि कहीं दूसरा दानकर्ता मुकर न जाए.’’
नई मुश्किलें
चुनौती केवल ऑपरेशन तक ही सीमित नहीं थी.
उससे पहले भी हर कदम पर नई मुश्किलें थीं.
डीके को जब अस्पताल लाया गया तो उसका लिवर ख़राब हो चुका था और उसके पैदा होने के बाद से ही उसकी पित्त की नली नही विकसित हुई जो उसकी परेशानियों को और जटिल बना रहा था.
सर गंगा राम में पीडियाट्रिक हैपेटॉलाजिस्ट या बच्चों की डाक्टर नीलम मोहन कहती हैं कि बच्चा लिवर ख़राबी के आख़िरी स्टेज में पहुंच गया था.
वो कहती हैं, ``बच्चे को पीलिया हो चुका था और ख़ून का रिसाव भी हो रहा था, उसे खुजली होती थी और उसकी छाती में संक्रमण फैला हुआ था. हमें ये डर था कि हम उसे प्रत्यारोपण से पहले ही खो न बैठे.’’
जब वो ठीक हुआ तो एक नई मुश्किल सामने आई.
डाक्टरी जांच में पाया गया कि प्रिया को टीबी था और ट्रांसप्लांट के लिए और इंतज़ार की ज़रूरत थी.
प्रिया का इलाज करने वाले डॉ संजीव सहगल कहते हैं, ``लिवर सिरोसिस की वजह से प्रिया का लिवर काफ़ी ख़राब हो चुका था. उसे उसी समय प्रत्यारोपण की जरुरत थी लेकिन पता चला उसे छाती में टीबी है और अगर उसी समय ट्रांसप्लांट होता तो टीबी सारे शरीर में फैल जाता.’’
डॉक्टरों ने पहले उसके टीबी का इलाज किया और फिर ट्रांसप्लांट संभव हो पाया.
डीके की मां चिन्वे कहती है कि उन्होंने भारत की मेडिकल सुविधाओं के बारे में बहुत सुना था.
वो कहती हैं, `` मैने ठान रखा था कि अपना बच्चा ठीक करा कर ही ले जाऊंगी. मेरी तीन बेटियां मुझ से पूछती थीं कि हमारे भाई को कब ला रही हो . मैं कहती थी जब तुम्हारा भाई फिट होगा तभी लाऊंगी. मैं भारत के डॉक्टरों की आभारी हूं.
हरीश आहुजा कहते है मुम्बई में उन्हें डाक्टरों ने दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल जाने की सलाह दी.
वो कहते हैं, ``डॉक्टरों ने कहा यहां स्वैप सुविधा उपलब्ध है. मैं अपना लिवर देने के लिए तैयार हो गया. अब मेरी पत्नी ठीक है मैं बहुत खुश हूं.’’
सर गंगा राम अस्पताल अब स्वैप लिवर ट्रांसप्लांट के लिए पंजीकरण की सुविधा भी शुरु कर रहा है ताकि डीके, प्रिया जैसे लोगो की मदद की जा सके.