दरबारी कान्हडा

थाट: 

राग दरबारी कान्हडा, तानसेन द्वारा बनाया हुआ राग है, यह धारणा प्रचिलित है। यह राग शांत और गम्भीर वातावरण पैदा करता है। इस राग में गंधार और धैवत पर आंदोलन किया जाता है। आरोह में गंधार को रिषभ का कण लगाकर और धैवत को पंचम का कण लगाकर लिया जाता है। इसी तरह अवरोह में गंधार को मध्यम का कण लगाकर और धैवत को निषाद का कण लगाकर लिया जाता है।

धैवत को अवरोह में छोड़ा जाता है जैसे - सा' (नि१)ध१ नि१ प। यह गमक और मींड प्रधान राग है। इस राग का विस्तार मन्द्र और मध्य सप्तक में किया जाता है। यह स्वर संगतियाँ राग दरबारी कान्हडा का रूप दर्शाती हैं -

,नि१ सा रे ; रे सा ; ,नि१ सा रे सा ; सा सा रे रे सा ,नि१ सा ; (,नि१) ,ध१ ; ,नि१ ,ध१ ,नि१ सा ; ,नि१ ,नि१ सा ; ,नि१ ,नि१ रे ; रे ग१ (रे)ग१ ; ग१ म प ; (म)ग१ म रे सा ; रे ,नि१ सा ; (,नि१),ध१ (,नि१),ध१ ,नि१ ,नि१ सा ; ,ध१ ,नि१ रे सा ; म प ध१ (प)ध१ नि१ ; ध१ नि१ सा' ; सा' (नि१)ध१ नि१ प ; म प ; नि१ नि१ प म प ; म प ; (म)ग१ ग१ म रे सा ;

 

राग दरबारी कान्हड़ा

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राग दरबारी कान्हड़ा

प्राचीन संगीत ग्रन्थों मे राग दरबारी कान्हड़ा के लिये भिन्न नामों का उल्लेख मिलता है। कुछ ग्रन्थों मे इसका नाम कणार्ट, कुछ मे कणार्टकी तो अन्य ग्रन्थों मे कणार्ट गौड़ उपलब्ध है। वस्तुत: कन्हण शब्द कणार्ट शब्द का ही अपभ्रंश रूप है। कान्हड़ा के पूर्व दरबारी शब्द का प्रयोग मुगल शासन के समय से प्रचलित हुआ ऐसा माना जाता है। कान्हड़ा के कुल कुल 18 प्रकार माने जाते हैं- Read More : राग दरबारी कान्हड़ा about राग दरबारी कान्हड़ा

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