जल चिकित्सा

जलचिकित्सा में जल का प्रयोग निम्नलिखित विधियों द्वारा किया जाता है : 1. एकांग तथा सर्वांग के लिये शीतल तथा उष्ण आवेष्टन (packings)। आर्द्रवस्त्रावेष्टन चिकित्सा व्यवसाय का एक महत्व का अंग हो गया है। 2. उष्ण वायु तथा बाष्पस्नान - टर्किश बाथ उष्णवायुस्नान का उत्तम उदाहरण है। डेविड उर्गुंहर्ट (David Urguhart) ने पौर्वात्य देशों से लौटने पर इंग्लैंड में इसको खूब प्रचलित किया। अब टर्किश बाथ एक स्वतंत्र सर्वमान्य सार्वजनिक प्रथा ही बन गई है। 3. शीतल और उष्ण जल का सर्वांग स्नान। 4. शीतल या उष्ण जल से पाद, कटि, शीर्ष, मेरुदंड आदि, एकांगस्नान। 5. आर्द्र तथा शुष्क पटबंधन और कंप्रेस (compresses)। 6. शीतल तथा उष्ण सेंक एवं पूल्टिस (poultices) 7. प्रक्षालन (Ablution) - इसमें 15 डिग्री -21 डिग्री सें. ताप का पानी हाथों से शरीर पर लगाया जाता है। 8. आसेक (Affusion) - इसमें रोगी टब में बैठा या खड़ा रहता है और उसके सर्वांग या एकांग पर बाल्टी से पानी डाला जाता है। 9. डूश (Douche) - इसमें पाइप (hose pipe) के द्वारा शरीर पर पानी छोड़ा जाता है। 10. जलपान - इसमें पीने के लिये शीतल या उष्ण जल दिया जाता है।

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश्‍ा प्राकृतिक चिकित्सक, पोषण चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, वानस्पतिक चिकित्सा, आयुर्वेद आदि पौर्वात्य चिकित्सा, होमियोपैथी, छोटी-मोटी शल्यक्रिया, मनोचिकित्सा,  जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा, उष्ण टावल से स्वेदन, कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक, वाष्प स्नान, कुन्जल, नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी, शोध, उदर रोग, प्रत

इस थेरेपी के अनुसार, भोजन प्राकृतिक रूप में लिया जाना चाहिए। ताज़े मौसमी फल, ताज़ी हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित भोजन बहुत ही लाभकारी हैं। ये आहार मोटे तौर पर तीन प्रकार में विभाजित हैं जो इस प्रकार हैं: Read More : प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा about प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा

Tags: 

प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा

सभी रोगों, उनके कारण और उपचार एक हैं। दर्दनाक और पर्यावरणीय स्थिति को छोड़कर, सभी रोगों का कारण एक है यानी शरीर में रुग्णता कारक पदार्थ का संचय होना। सभी रोगों का उपचार शरीर से रुग्णता कारक पदार्थ का उन्मूलन है। रोग का प्राथमिक कारण रुग्णता कारक पदार्थ का संचय है। बैक्टीरिया और वायरस शरीर में प्रवेश कर तभी जीवित रहते हैं जब रुग्णता कारक पदार्थ का संचय हो और उनके विकास के लिए एक अनुकूल वातावरण शरीर में स्थापित हुआ हो। अतः रोग का मूल कारण रुग्णता कारक पदार्थ है और बैक्टीरिया द्वितीयक कारण बनते हैं। गंभीर बीमारियां शरीर द्वारा आत्म चिकित्सा का प्रयास होती हैं। अतः वे हमारी मित्र हैं, शत्रु नही Read More : प्राकृतिक चिकित्सा about प्राकृतिक चिकित्सा