पौर्वात्य चिकित्सा

पौर्वात्य चिकित्सा शास्त्र इस तरह की बीमारियों के ठीक होने का दावा करता है। होम्योपैथी में भी इस क्षेत्र में सम्भावनाएँ मिलती हैं। आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में इनमें से कुछ बीमारियों का इलाज तो नहीं है पर इनके बढ़ने से रोकने के तरीके उपलब्ध हैं। जैसे कि मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि रोगो पर नियंत्रणकिया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि विटामिन ई और विटामिन सी से अपजनिक बीमारियों को कम करने में मदद मिलती है। एंटीआक्सीडेंट तत्व का प्रयोग इसमें फायदेमंद साबित हुआ है। असल समाधान रहन-सहन में बदलाव - सही पोषण, कसरत,सही मानसिक सोच और तनाव रहित जीवन में है।

स्वाईन फ्लू के उदाहरण से हम इस विवरण को ज्यादा आसानी से समझ पायेंगे। गत वर्षस्वाईन फ्लू की बीमारी देश में कई शहरों में फैल गयी थी। स्वाईन फ्लू के विषाणू याने वायरस होते है, जिनके पर अक्सर बदलते रहते है। कुछ प्रकार ज्यादा जानलेवा होते उनके एन्टीजन विशेष भी कुछ कुछ बदलते रहते है, जिसके कारण प्रतिरोधी वॅक्सीन बताना भी खास उपयोगी नही। इन बदलते तेवरो के कारण स्वाईन फ्लू की गतिविधियॉं बदलती रहती है।

इधर वातावरण में भी ठंड-गरमी आदि मौसम के कारण स्वाईन फ्लू का फैलाव ज्यादा या कम होता है। ठंड में ये वायरस ज्यादा टिक पाते है, जिससे बीमारी का फैलाव ज्यादा होता है। गरमी के दिनो में इनका टिक पाना मुश्किल होता है, इसलिये बीमारी कम होती है। अब मनुष्य को देखे तो हर किसी को स्वाईन फ्लू नही होता। बच्चे इसकी चपेट में ज्यादा आते है, और बूढे भी। बच्चों में इस फ्लू वायरस के प्रति प्रतिपिंड अबतक बने नही होते और बुढों में प्रतिपिंडों की मात्रा घटती है। इसलिये उम्र और बीमारी का नाता देखा जाता है। जहॉं भीड ज्यादा, वहाँ फैलाव भी ज्यादा है, क्योंकी यह वायरस छींक के द्वारा हवा में और फिर साँस के रास्ते शरीर में पहॅुच कर बिमारी पैदा करता है। पर खास बात यह है कि यह एक ही बार में भीड़ में बहुत सारे लोगो तक एक ही समय में फैलता है।

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश्‍ा प्राकृतिक चिकित्सक, पोषण चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, वानस्पतिक चिकित्सा, आयुर्वेद आदि पौर्वात्य चिकित्सा, होमियोपैथी, छोटी-मोटी शल्यक्रिया, मनोचिकित्सा,  जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा, उष्ण टावल से स्वेदन, कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक, वाष्प स्नान, कुन्जल, नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी, शोध, उदर रोग, प्रत

इस थेरेपी के अनुसार, भोजन प्राकृतिक रूप में लिया जाना चाहिए। ताज़े मौसमी फल, ताज़ी हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित भोजन बहुत ही लाभकारी हैं। ये आहार मोटे तौर पर तीन प्रकार में विभाजित हैं जो इस प्रकार हैं: Read More : प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा about प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा

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