मिट्टी की पट्टी

पट्टी बनाने के लिए नर्म, पतला, छिद्रयुक्त एवं एकदम स्वच्छ कपड़ा उपयोग में लेना चाहिए। एकदम पुराना वस्त्र इस रूप में उपयोगी होता है। ऐसे कपड़ों को लकड़ी के चिकने तख्त अथवा पटे पर बिछाकर उसके बीच में मिट्टी रखें। तत्पश्चात् कपड़े के चारों छोर को एक के बाद एक ऊपर की ओर मोड़कर हथेली एवं उँगलियों से दबाकर पट्टी तैयार करें। इससे ऊपरी भाग की मिट्टी ढँक जायेगी। कपड़े के नीचे की ओर केवल एक ही तह रहेगी। इस एक तहवाले सिरे को शरीर पर रखें। सामान्य रूप से पट्टी आधा इंच मोटी होनी चाहिए किन्तु यदि दुर्बल रोगी के कोमल अंगों पर पट्टी रखनी हो तो उस वक्त पट्टी की मोटाई घटाकर पाव इंच या एक तिहाई इंच की जा सकती है। पट्टी की लंबाई एवं चौड़ाई का आधार, उसे शरीर के किस भाग पर रखना है इस पर निर्भर करता है। मिट्टी शरीर के रोमछिद्रों द्वारा शरीर का कचरा खींच लेती है। अतः एक बार उपयोग में ली गयी पट्टी का दूसरी बार उपयोग करना हानिकारक है। अतः रोज ताजी एवं ठण्डी मिट्टी का ही उपयोग करें। एक बार उपयोग में ली गई मिट्टी को अच्छी तरह धूप एवं बारिश लगने पर उसका कचरा धुल जाता है। उसके बाद उसे पीस और छानकर दूसरी बार उपयोग में लाया जा सकता है। पट्टी के कपड़े को भी हर बार अच्छी तरह से धोकर धूप में सुखा लेना चाहिए।

पट्टी रखने की विधि

सामान्यतया मिट्टी की पट्टी आधे से एक घण्टे तक रखने चाहिए। शरीर की गर्मी के कारण मिट्टी गरम हो जाये तो पट्टी उठा लें। यदि पट्टी रखना जारी रखना हो तो आधे से एक घण्टे के अंतर में पट्टी बदलते रहना चाहिए। मिट्टी की पट्टी रखने पर प्रारम्भ में रोगी को थोड़ी ठण्डी लगती है किन्तु बाद में भी ठण्डी लगती रहे और रोगी को अच्छा न लगे तो पट्टी उठा लेना चाहिए अन्यथा अधिक ठण्ड की वजह से पट्टीवाले अंग का रुधिराभिसरण बंद होकर वह अंग सुन्न हो जाता है।

मिट्टी की पट्टी से लाभ

मिट्टी की पट्टी रखने से उसके संपर्क में आनेवाली त्वचा संकुचित होती है जिससे ऊपरी सतह का अधिक रक्त भीतरी भाग में पहुँचकर वहाँ के कोषों को शुद्ध करता है एवं पोषण देता है। भीतरी भाग में जमे हुए रक्त (कन्जेक्शन) को अलग करने में, सूजन एवं दर्द को दूर करने में एवं जख्मों को भरने में मिट्टी की पट्टी का प्रयोग लाभदायक है।

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