नेति

नेति, षटकर्म का महत्वपूर्ण अंग है। नेति मुख्यत: सिर के अन्दर वायु-मार्ग को साफ करने की क्रिया है। हठयोग प्रदीपिका और अन्य स्रोतों में नेति के बहुत से लाभ वर्णित हैं। नेति के मुख्यत: दो रूप हैं : जलनेति तथा सूत्रनेति। जलनेति में जल का प्रयोग किया जाता है; सूत्रनेति में धागा या पतला कपड़ा प्रयोग में लाया जाता है।

नेति के दो प्रकार है : जल नेति और सूत्र नेति

जल नेति
नमकीन पानी के साथ नेति

तकनीक :

विशेष रूप से बने हुए बर्तन, नेति-पात्र, को गरम नमकीन पानी से भर लें। पानी का तापमान 38-40 सेन्टीग्रेड हो व उसमें 1 लीटर पानी में लगभग 1 चाय का छोटा चम्मच नमक मिला हो।* सिर को धोने के पात्र (जैसे टब) के ऊपर झुकाएं और आहिस्ता से नेति-पात्र की नली को दायें नथुने में डाल दें (जिसके फलस्वरूप नथुना बंद हो जाता है।) सिर को थोड़ा आगे मोड़ें और इसी समय सिर को बायीं ओर झुकाएं जिससे पानी बायें नथुने से बाहर निकल जाये। खुले मुख से श्वास लेते रहें। दायें नथुने से नेति-पात्र में भरा लगभग आधा पानी बहा दें।

अब आहिस्ता से नेति-पात्र की नली को बायें नथुने में डालें और सिर को दायीं ओर झुकाएं, जिससे पानी दायें नथुने से बाहर निकल जाये। जब यह क्रिया समाप्त हो जाए तब कपाल-भाति-प्राणायाम तकनीक (देखें हठ-योग क्रिया 5) से दोनों नथुनों से अवशिष्ट पानी बाहर निकाल दें।

नाक के शुद्धिकरण को पूर्ण करने के लिए, एक नथुने को बंद करके दूसरे नथुने से 3-5 बार प्रत्येक नथुने से जोर से श्वास बाहर निकालें (जैसे आप नाक साफ करते हैं)। इस क्रिया के दौरान पानी को कानों में जाने से रोकने के लिए यह जरूरी है कि मुंह खुला रहे।

सिफारिश की जाती है कि नेति रोजाना की जाए।

लाभ :
सिर की सभी इन्द्रियों पर सार्थक प्रभाव होता है। देखने की क्षमता बढ़ती है और थकी-मांदी आंखों को आराम मिलता है (उदाहरणार्थ, कम्प्यूटर पर घंटों काम करने के बाद)। नेति सिर-दर्द को दूर करने में भी सहायक होती है। स्मरण-शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है। यह नासापुट और शिरानाल की समस्याओं के समाधान में भी लाभदायक है। इसका सिर में ठंडक और साइनासाइटिस (नाक में सूजन) में सुरक्षात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके नियमित अभ्यास से नेति परागज ज्वर (हे-फीवर) और पराग-जन्य प्रति-ऊर्जा (एलर्जी) भी दूर होती है या इनमें सुधार तो होता ही है।

सावधानी :
इसका अभ्यास नहीं करें, यदि आपको भयंकर सर्दी (जुकाम) अथवा कान में पीड़ा है।

सूत्र नेति
रबड़ की नाल-शलाका या मोमयुक्त सूत से नेति करना

यह नेति सूत की उस बटी हुई पट्टी से की जाती है जिसे पहले पिघली हुई मोम में भिगो लिया गया हो। या एक नरम रबड़ की नाल-शलाका से भी की जाती है। इस तकनीक को सही निष्पादन के लिए कुछ अभ्यास आवश्यक होता है और इसलिए पहली बार इसका अभ्यास "दैनिक जीवन में योग" के किसी योग शिक्षक के मार्ग दर्शन में किया जाना चाहिये।

जैसे जल नेति से होता है वैसे ही सूत्र नेति भी नासिका की पूरी सफाई करती है। नमकीन पानी से प्रक्षालन करने से भी अधिक गहन रूप से नाल-शलाका के मालिश का प्रभाव होता है।

यह तकनीक श्वास की समस्या या संकरे नासिक-विवरों से ग्रसित व्यक्तियों के लिए बहुत लाभ्रपद है। उचित अभ्यास के साथ इसे रोजाना या हर दूसरे दिन किया जा सकता है।

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा शुद्धि कर्म, जल चिकित्सा, ठण्डी पट्टी, मिटटी की पट्टी, विविध प्रकार के स्नान, मालिश्‍ा प्राकृतिक चिकित्सक, पोषण चिकित्सा, भौतिक चिकित्सा, वानस्पतिक चिकित्सा, आयुर्वेद आदि पौर्वात्य चिकित्सा, होमियोपैथी, छोटी-मोटी शल्यक्रिया, मनोचिकित्सा,  जल चिकित्सा, होमियोपैथी, सूर्य चिकित्सा, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, मृदा चिकित्सा, उष्ण टावल से स्वेदन, कटि स्नान, टब स्नान, फुट बाथ, परिषेक, वाष्प स्नान, कुन्जल, नेति आदि का प्रयोग वात जन्य रोग पक्षाद्घात राधृसी, शोध, उदर रोग, प्रत

इस थेरेपी के अनुसार, भोजन प्राकृतिक रूप में लिया जाना चाहिए। ताज़े मौसमी फल, ताज़ी हरी पत्तेदार सब्जियां और अंकुरित भोजन बहुत ही लाभकारी हैं। ये आहार मोटे तौर पर तीन प्रकार में विभाजित हैं जो इस प्रकार हैं: Read More : प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा about प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली खुराक चिकित्सा

Tags: