संपर्क : 7454046894
नई स्वरयंत्र की सूजन

नई स्वरयंत्र की सूजन(मानव गला)
कारण :-
अधिक सर्दी लगना, पानी में अधिक भींगना, अधिक देर तक गाना गाना, गले में धूल का कण जमना, धुंआ मुंह में जाना, अधिक जोर से बोलना तथा अचानक मौसम परिवर्तन के कारण यह रोग होता है।
लक्षण :-
इस रोग में स्वरयंत्र की श्लैष्मिक झिल्ली फूल जाती है और उससे लसदार श्लेष्मा निकलने लगता है। गला कुटकुटाना और जलन होना, कड़ा श्लेष्मा निकलना, कुत्ते की तरह आवाज होना, सूखी खांसी आना, आवाज खराब होना या गला बैठ जाना, बुखार होना, प्यास अधिक लगना, भूख न लगना, सांस लेने में कष्ट होना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण है।
तेज बुखार होना तथा रोगी के शरीर को छूने से ऐसा लगना जैसे आग जल रही है। कुत्ता खांसी आना, उंघाई आना, नर्तन रोग होना, चेहरा तमतमाया हुआ और लाल होना, आंखों की पुतली फैली हुई और सिकुड़ी हुई होना, शरीर के ढके हुए भाग में पसीना आना, गले में दर्द होना और रोगी में हर समय प्रलाप (रोने-धोन) की प्रवृति बना रहना। इस तरह के लक्षणों में बेलेडोना औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करना चाहिए।
2. ऐकोनाइट :- स्वरयंत्र की सूजन के साथ अन्य लक्षण जैसे- सूखी खांसी आना और गले का कफ निकालने के लिए बार-बार खांसते रहना। बुखार होना, बेचैनी, गले का दर्द, दम फुलना आदि लक्षणों में ऐकोनाइट औषधि की 3x मात्रा का सेवन करना चाहिए।
3. ब्रोमियम :- यदि स्वरयंत्र की सूजन में वायु नलियों के ऊपरी अंश रोगग्रस्त हो गये हैं और खांसी आने पर बच्चा अपना गला पकड़ लेता है तो ऐसे लक्षणों में बच्चे को ब्रोमियम औषधि की 1x मात्रा का सेवन कराना हितकारी होता है।
4. स्पंजिया या आयोडिन :- सूखी खांसी आना, कड़ी और कुकुर खांसी होना, गले का खराब होना, सांस लेने में कष्ट होना, आधी रात के पहले बीमारी का बढ़ जाना आदि लक्षणों में स्पंजिया औषधि की 3x मात्रा या आयोडिन औषधि की 3 शक्ति का उपयोग करना लाभकारी होता है। यदि यह रोग किसी कमजोर बच्चे को हो गया हो तो बच्चे को स्पंजिया के स्थान पर आयोडिन औषधि देना उचित होता है।
5. फास्फोरस :- स्वरयंत्र की खराबी के कारण आवाज बैठ जाने पर फास्फोरस औषधि की 3 शक्ति का सेवन करना चाहिए। इस औषधि की स्वरयंत्र पर विशेष क्रिया होती है जिससे रोग जल्दी ठीक होता है।
6. कैलि-बाइक्रोम :- गाढ़ा लसदार सूत की तरह कड़ा पीले रंग का श्लेष्मा निकलने पर कैलि-बाइक्रोम औषधि की 3x मात्रा या 6 शक्ति का विचूर्ण का प्रयोग किया जाता है।
7. हिपर-सल्फर :- खांसी ढीली होती जाती है लेकिन गले की आवाज खराब हो जाती है। रोगी के मुंह से घरघर की आवाज आती रहती है और सूखी व ठंडी हवा से रोग बढ़ता है तथा गर्मी से रोग के लक्षण कम होते हैं। ऐसे लक्षणों में हिपर-सल्फर औषधि की 6 शक्ति का उपयोग करना फायदेमंद होता है।
8. आर्सेनिक :- अधिक कमजोरी तथा सान्निपातिक बुखार में स्वरयंत्र सूज जाने पर आर्सेनिक औषधि की 3x मात्रा या 6 शक्ति से रोग का उपचार करें।
9. कास्टिकम :- गले का खराब होने और छाती में दर्द होना आदि लक्षणों में कास्टिकम औषधि की 6 शक्ति का सेवन करना हितकारी होता है।
औषधियों से उपचार करने के साथ ही कुछ अन्य उपचार :-
इस रोग के शुरुआती अवस्था में ऐकोन, स्पंजिया या ऐण्टिम-टार्ट औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
यदि स्वरयंत्र की सूजन पूर्ण रूप से विकसित हो तो ब्रोमिन, आयोड, स्पंजिया, कैलि-बाई और हिपर-सल्फर औषधि का उपयोग किया जाता है। इन औषधियों का प्रयोग रोग की अवस्था के अनुसार 15 मिनट से लेकर 3 घंटे के अंतर पर करना चाहिए।
बहुत गर्म पानी में कपड़ा भिगोंकर उसे अच्छी तरह निचोड़कर गले पर रखने से रोग में आराम मिलता है।
गर्म कपड़े से बदन ढककर रखना चाहिए।
धूम्रपान करना व शराब पीना इस रोग की अवस्था में हानिकारक होता है।
गर्म पानी या गर्म दूध पीना लाभदायक है और इसके साथ रोग को ठीक करने के लिए डॉक्टर की सलाह लें।
अडाना | अभोगी कान्ह्डा | अल्हैया बिलावल | अल्हैयाबिलावल | अहीर भैरव | अहीरभैरव | आनंदभैरव | आसावरो | ककुभ | कलावती | काफ़ी | काफी | कामोद | कालिंगड़ा जोगिया | कीरवाणी | केदार | कोमल-रिषभ आसावरी | कौशिक कान्हड़ा | कौशिक ध्वनी (भिन्न-षड्ज) | कौसी | कान्ह्डा | खंबावती | खमाज | खम्बावती | गारा | गुणकली | गुर्जरी तोडी | गोपिका बसन्त | गोरख कल्याण | गौड मल्हार | गौड सारंग | गौड़मल्लार | गौड़सारंग | गौरी | गौरी (भैरव अंग) |चन्द्रकान्त | चन्द्रकौन्स | चारुकेशी | छाया-नट | छायानट | जयजयवन्ती | जयतकल्याण | जलधर | केदार | जेजैवंती | जेतश्री | जैत | जैनपुरी | जोग | जोगकौंस | जोगिया | जोगेश्वरी | जौनपुरी | झिंझोटी | टंकी | तिलंग | तिलंग बहार | तिलककामोद | तोडी | त्रिवेणी | दरबारी कान्हड़ा | दरबारी कान्हडा | दीपक | दुर्गा | दुर्गा द्वितीय | देव गन्धार | देवगंधार | देवगिरि बिलावल | देवगिरी | देवर्गाधार | देवश्री | देवसाख | देश | देशकार | देस | देसी | धनाश्री | धानी | नंद | नट भैरव | नट राग | नटबिलावल | नायकी कान्ह्डा | नायकी द्वितीय | नायकीकान्हड़ा | नारायणी | पंचम | पंचम जोगेश्वरी | पटदीप | पटदीपकी | पटमंजरी | परज | परमेश्वरी | पहाड़ी | पीलू | पूरिया | पूरिया कल्याण | पूरिया धनाश्री | पूर्याधनाश्री | पूर्वी | प्रभात | बंगालभैरव | बड़हंससारंग | बसन्त | बसन्त मुखारी | बहार | बागेश्री | बागेश्वरी | बिलावल शुद्ध | बिलासखानी तोडी | बिहाग | बैरागी | बैरागी तोडी | भंखार | भटियार | भीम | भीमपलासी | भूपाल तोडी | भूपाली | भैरव | भैरवी | मधमाद सारंग | मधुकौंस | मधुवन्ती | मध्यमादि सारंग | मलुहा | मल्हार | मांड | मारवा | मारू बिहाग | मालकौंस | मालकौन्स | मालगुंजी | मालश्री | मालीगौरा | मियाँ की मल्लार | मियाँ की सारंग | मुलतानी | मेघ | मेघ मल्हार | मेघरंजनी | मोहनकौन्स | यमन | यमनी | रागेश्री | रागेश्वरी | रामकली | रामदासी मल्हार | लंका-दहन सारंग | लच्छासाख |ललिट | ललित | वराटी | वसंत | वाचस्पती | विभाग | विभास | विलासखानी तोड़ी | विहाग | वृन्दावनी सारंग | शंकरा | शहाना | शहाना कान्ह्डा | शिवभैरव | शिवरंजनी | शुक्लबिलावल | शुद्ध कल्याण | शुद्ध मल्लार | शुद्ध सारंग | शोभावरी | श्याम | श्याम कल्याण | श्री | श्रीराग | षट्राग | सरपर्दा | सरस्वती | सरस्वती केदार | साजगिरी | सामंतसारंग | सारंग (बृंदावनी सारंग) | सिंदूरा | सिंधुभैरवी | सिन्धुरा | सुघराई | सुन्दरकली | सुन्दरकौन्स | सूरदासी मल्हार | सूरमल्लार | सूहा | सैंधवी | सोरठ | सोहनी | सौराष्ट्रटंक | हंसकंकणी | हंसकिंकिणी | हंसध्वनी | हमीर | हरिकौन्स | हामीर | हिंदोल | हिन्डोल | हेमंत |हेमकल्याण | हेमश्री |