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पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की तूफ़ानी माँग

हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में एक नायाब जड़ी मिलती है ‘यारशागुंबा’ जिसका उपयोग भारत में तो नहीं होता लेकिन चीन में इसका इस्तेमाल प्राकृतिक स्टीरॉयड की तरह किया जाता है.
शक्ति बढ़ाने में इसकी करामाती क्षमता के कारण चीन में ये जड़ी खिलाड़ियों ख़ासकर एथलीटों को दी जाती है.
इस जड़ी की यह उपयोगिता देखकर पिथौरागढ़ और धारचूला के इलाक़ों में बड़े पैमाने पर स्थानीय लोग इसका दोहन और तस्करी कर रहे हैं क्योंकि चीन में इसकी मुँहमाँगी क़ीमत मिलती है.
यहाँ तक कि इसके संग्रह और व्यापार में शामिल लोगों में इसके लिए ख़ूनी संघर्ष होने की घटनाएं देखने में आई हैं और कुमाऊँ में हत्या के दो मामले भी दर्ज हो चुके हैं.
जब इसके अवैध कारोबार की ख़बर सरकार और वैज्ञानिकों के कानों में पड़ी तो सब जागे और इसकी खोज में निकल पड़े बर्फ से लदी चोटियों की तरफ.
कीड़ा-जड़ी
सामान्य तौर पर समझें तो ये एक तरह का जंगली मशरूम है जो एक ख़ास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उसपर पनपता है.
इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम है कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम है हैपिलस फैब्रिकस.
स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते हैं क्योंकि ये आधा कीड़ा है और आधा जड़ी है और चीन-तिब्बत में इसे यारशागुंबा कहा जाता है.
ये जड़ी 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है यानी जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके पनपने का चक्र शुरू जाता है.
डॉ निर्मल सुधीर हर्ष
देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, एफआरआई का एक दल हाल ही में इसका अध्ययन करके लौटा है. एफआरआई में फॉरेस्ट पैथोलजी विभाग के प्रमुख डॉ निर्मल सुधीर हर्ष बताते हैं, "ये जड़ी 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है यानी जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके पनपने का चक्र शुरू जाता है.”
इसकी तलाश करना आसान नहीं. एफआरआई की जिस टीम ने इसके लिए इन दुर्गम इलाक़ों की ख़ाक छानी उसके सदस्य रिसर्च एसोसिएट कुमार खनेजा ने अपना अनुभव बताया, “धारचूला से क़रीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग करने के बाद बड़ी मुश्किल से हम वहाँ पहुँचे लेकिन स्थानीय लोगों ने वहाँ पहले से ही डेरा डाल रखा था.”
“इसे लाने के लिए उसे ही भेजा जाता है जिसकी निगाहें तेज़ हो क्योंकि ये नरम घास के बिल्कुल अंदर छुपा होता है और बड़ी कठिनाई से ही पहचाना जा सकता है.”
करामाती बूटी
ये करामाती जड़ी सुर्खियों में न आती, अगर इसकी तलाश को लेकर हाल के समय में मारामारी न मचती और ये सबसे पहले हुआ स्टुअटगार्ड विश्व चैंपियनशिप में 1500 मीटर, तीन हज़ार मीटर और दस हज़ार मीटर वर्ग में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद.
उनकी ट्रेनर मा जुनरेन ने पत्रकारों को बयान दिया कि उन्हें यारशागुंबा का नियमित रूप से सेवन कराया गया है.
बताया जाता है कि 3-4 साल पहले जहाँ ये फंगस चार लाख रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता था वहीं अब इसकी क़ीमत आठ से 10 लाख प्रति किलोग्राम हो गई है.
वनस्पतिशास्त्री डॉक्टर एएन शुक्ला कहते हैं, “इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं. ये तत्काल रूप में ताक़त देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है उसमें ये पकड़ा नहीं जाता.”
चीनी –तिब्बती परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसके और भी उपयोग हैं. देहरादून के एक बौद्ध मठ के पुजारी प्रेमा लामा कहते हैं, “फेफड़ों और किडनी के इलाज में इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है.”
सूत्रों के अनुसार कीड़ा-जड़ी से अब यौन उत्तेजना बढ़ाने वाले टॉनिक भी तैयार किए जा रहे हैं जिनकी भारी मांग है.”
इन सब कारणों से इसकी अहमियत इतनी ज़्यादा है और गुपचुप कारोबार जारी है. उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक एसएस रावत कहते हैं कि, “इसके कारोबार को वैध करने का प्रयास किया जा रहा है और वन विभाग ख़ुद इसका संग्रह करवाएगा लेकिन इसमें इतना पैसा शामिल है कि अवैध संग्रहण और तस्करी जारी है.”
दूसरी ओर वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चिंता ये है कि चाहे अवैध हो या वैध इसके अंधाधुंध दोहन से हिमालय की नाज़ुक जैव विविधता और पारिस्थितिकी का नुक़सान हो रहा है