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मोबाइल गेमिंग डिसऑर्डर क्या है?
डब्ल्यूएचओ के शिकार लोगों में गेम खेलने की अलग तरह की लत होती है. ये गेम डिजीटल गेम भी हो सकते हैं या फिर वीडियो गेम भी.
डब्लूएचओ के मुताबिक इस बीमारी के शिकार लोग निजी जीवन में आपसी रिश्तों से ज़्यादा अहमियत गेम खेलने को देते हैं जिसकी वजह से रोज़ के कामकाज पर असर पड़ता है.
लेकिन किसी भी आदमी को अगर इसकी लत है, तो उसे बीमार करार नहीं दिया जा सकता.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक उस व्यक्ति के साल भर के गेमिंग पैटर्न को देखने की ज़रूरत होती है. अगर उसकी गेम खेलने की लत से उसके निजी जीवन में, पारिवारिक या समाजिक जीवन में, पढ़ाई पर, नौकरी पर ज़्यादा बुरा असर पड़ता दिखता है तभी उसे 'गेमिंग एडिक्ट' यानी बीमारी का शिकार माना जा सकता है.
दिल्ली के एम्स में बिहेवियरल एडिक्शन सेंटर है. 2016 में इसकी शुरूआत हुई थी. सेंटर के डॉक्टर यतन पाल सिंह बलहारा के मुताबिक, पिछले दो साल में देश में मरीज़ों की संख्या बहुत बढ़ी है.
डॉक्टर बलहारा पेशे से मनोचिकित्सक हैं. उनके मुताबिक किसी भी गेमिंग एडिक्शन के मरीज़ में कुल पांच बातों को देखने की ज़रूरत होती है -