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डिप्रेशन या किसी मानसिक विकार के कारण

यूं तो अंधेरे में थोड़ा बहुत डर लगना सामान्य बात है लेकिन अगर ये डर ज्यादा बढ़ जाए तो ये एक तरह का मानोरोग बन जाता है, जिसे मनोविज्ञान की भाषा में निक्टोफोबिया कहते हैं। मनुष्य का अज्ञान से डर स्वाभाविक है और अंधेरे में भी हमें किसी चीज का ज्ञान नहीं हो पाता इसलिए डर लगता है। लेकिन कुछ लोगों को अंधेरे में ही कई तरह की आकृतियां दिखने लगती हैं या किसी इंसान के होने का आभास होता है, तो ये एक तरह का मनोविकार है।
हमें डर क्यों लगता है
डर लगने की इस प्रक्रिया को अगर आप शांत दिमाग से सोचेंगे तो आपको आश्चर्य होगा कि इंसान का दिमाग कितना कॉम्पलेक्स है लेकिन इसे जानकर आपको मजा आएगा क्योंकि आपको भी कभी न कभी डर तो लगा होगा। असल में जब भी हमें अपने आसपास कोई चीज या कोई आवाज महसूस होती है, जिसे हम नहीं देख सकते या नहीं जान सकते, तो दिमाग में थेलेमस नाम का हिस्सा इसका संकेत उस हिस्से को भेजता है जहां से हमारे दिमाग में चित्र और विचार पैदा होते हैं। चूंकि दिमाग इस चीज या आवाज का कोई चित्र नहीं बना पाता इसलिए इसके बाद थेलेमस दिमाग के दूसरे हिस्सों को यही संकेत भेजता है। जब यही संकेत उस हिस्से तक पहुंचते हैं जहां से एड्रेनलाइन और स्ट्रेस हार्मोन प्रोड्यूस होता है, तो दिमाग वो हार्मोन निकालने लगता है और हमें डर और चिंता की भावना आना शुरू हो जाती है। यही संकेत न्यूरॉन के सहारे ग्लुटामेट नाम के हिस्से तक पहुंचता है, तो वहां से हमें भागने, चीखने या लड़कर सामना करने के विचार मिलते हैं। 'भागने या लड़ने के इस रिएक्शन से शरीर में एक तरह का जोश आता है और हमारा दिल ब्लड की पंपिंग तेज कर देता है। ये सभी प्रक्रियाएं कई बार एक साथ इतनी तेजी से घटती हैं कि अचानक ब्लड पंपिंग की स्पीड बढ़ने से ब्लड प्रेशर और दिल की धड़कन बहुत तेज हो जाती है, जिसे आप डर के समय महसूस कर सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कई बार शरीर को कमजोरी लगने लगती है या चक्कर आने लगता है और व्यक्ति बेहोश होकर गिर पड़ता है।
निक्टोफोबिया के लक्षण
- रात में अचानक से डर लगने लगना
- अंधेरे वाली जगह पर जाने से डर लगना
- अंधेरे में डर के मारे पसीना आना, सांस लेने में तकलीफ होना या पैनिक अटैक आना
- रात में आवाजें सुनना या छाया देखना
- अंधेरे में किसी के आसपास होने को महसूस करना
बच्चों को बचपन में डराना
निक्टोफोबिया का सबसे बड़ा कारण मां-बाप द्वारा छोटे बच्चों को अंधेरे के बारे में बचपन से डराया जाना है। बच्चों के कोरे दिमाग में ये बातें भरना कि अंधेरे में भूत होता है या वहां से कोई जानवर निकलकर खा लेगा, गलत है। कई बार बिना किसी आहट के भी बच्चे अंधेरे के बारे में कोरी कल्पना करने लगते हैं। ये कल्पनाएं बड़े होने पर भी उनके दिमाग में होती हैं और इस वजह से उन्हें अंधेरे से डर लगता है। इसी तरह कई बार बच्चों को बचपन में सजा के लिए या अन्य किसी कारण से अंधेरे कमरे में अकेले बंद कर दिया जाता है। इस कारण भी बच्चे में अंधेरे के लिए डर बैठ जाता है।
किसी हादसे के कारण
ज्यादातर मामलों में ये डर उन्हें लगता है जिन लोगों के साथ अंधेरे में पहले कोई हादसा हो चुका होता है या जिन्होंने पहले किसी हादसे को होते देखा होता है। ऐसे में अंधेरे में जाते ही उन्हें वही बातें याद आती हैं और वो डरने लगते हैं।
डिप्रेशन या किसी मानसिक विकार के कारण
कई बार इस तरह के डर की वजह आपका मानसिक तनाव या अवसाद भी हो सकता है। तनाव या अवसाद की स्थिति में हमारा दिमाग ठीक से काम नहीं कर पाता है ऐसे में कई बार अचानक से कोई चीज सामने आने पर दिमाग तक उसका चित्र तुरंत नहीं पहुंच पाता, ऐसे में अंधेरे में किसी के सामने होने पर या आवाज सुनाई देने पर व्यक्ति को अचानक से डर लगता है। लेकिन ऐसी स्थिति में मस्तिष्क कुछ सेकंड में ही जब वयक्ति के डील-डौल और आवाज को पहचानकर उसका चित्र बना देता है, तो हमारा डर खत्म हो जाता है और सांसों और धड़कन की गति धीरे-धीरे सामान्य हो जाती है।