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हमीर
राग हमीर रात्रि के समय का वीर रस प्रधान और चंचल प्रक्रुति का राग है। यह कल्याण थाट का राग है। ग म नि ध ; ध ध प यह राग वाचक स्वर संगति कान में पडते ही राग हमीर का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। सा रे सा सा ; ग म नि ध इस प्रकार निषाद से धैवत पर खटके से अथवा मींड द्वारा आया जाता है। इस राग में तीव्र मध्यम के साथ पंचम लिया जाता है जैसे - म् प ग म ध। इस राग के आरोह में निषाद को वक्र रूप में लिया जाता है जैसे - ग म ध नि ध सा'। वैसे ही अवरोह में गंधार को वक्र रूप मे लिया जाता है जैसे - म प ग म रे सा।
आरोह में उत्तरांग इस प्रकार लिया जा सकता है - ग म (नि)ध नि सा' या प ध प प सा' या ग म ध नि ध सा' या म१ प ध नि सा'। आरोह में सौन्दर्य व्रुद्धि हेतु रिषभ का प्रयोग क्वचित किया जाता है जैसे - ध प म् प ग म रे ; रे ग म ध प। ग म ध प सा' इस प्रकार पंचम से तार सप्तक के षड्ज पर जाना भी कला पूर्ण और मधुर सुनाई देता है। धैवत इस राग का प्राण स्वर है जिस पर न्यास किया जाता है जो की वीर रस दर्शाता है। इस राग में कभी कभी विवादी स्वर के रूप में निषाद कोमल को अल्प रूप में दिखाते हैं।
यह उत्तरांग प्रधान राग है। इसका स्वर विस्तार मध्य और तार सप्तक में अधिक खिलता है। यह स्वर संगतियां राग हमीर का रूप दर्शाती हैं -
सा रे रे सा ; प ; ग म प ग म रे सा ; ग म नि ध ध प ; ग म ध नि सा' ; प ध प प सा' ; ग म ध नि ध सा' ; म् प ध नि सा' ; सा' रे' सा' ; नि सा' ध ध प ; सा' नि ध प ; म् प ग म रे ; प ग म रे सा ;
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