कोनासन

कोनासन की विधि- कोनायन को करने के लिए सबसे पहले सीधे सावधान की स्थिति में खड़े हो जाएं। फिर अपने पैरों के बीच दो से ढाई फुट की दूरी बनाएं। अब अपनी कमर को धीरे-धीरे बाईं ओर झुकाकर बाएं हाथ की उंगलियों से बाएं पैर के पंजों को छुएं और दाएं हाथों को बिल्कुल सीधा सिर के पास कनपटियों से लगाकर सिर की सीध में रखें। सांस लेने की क्रिया सामान्य रखें। अब कमर को दाईं ओर झुकाकर दाएं हाथों की उंगलियों से दाएं पैर के पंजों को छुएं और बाएं हाथ को सिर की सीध में कनपटियों के पास रखें। अब इस तरह से इस क्रिया को दोनों तरफ से बराबर-बराबर करें। इस आसन के लिए केवल शरीर में कमर से ऊपर का भाग झुकाएं तथा कोहनियों व घुटनों को सीधा व तान कर रखें।
आसन से रोगों में लाभ-
          इसके अभ्यास से नस-नाड़ियों तथा पूरे शरीर की मालिश हो जाती है, जिससे शरीर में खून का बहाव तेज होता है। इस आसन से खून शुद्ध होता है। यह कमर दर्द व साइटिका (गृधसी) रोग को दूर करता है। यह कमर व जांघों की अधिक चर्बी को कम कर कमर को पतला व सुंदर बनाता है। इससे शरीर सुंदर व चेहरा पर चमक आता है। यह आसन स्त्रियों के लिए भी लाभकारी होता है। गर्भधारण के 6 महीनों तक स्त्री इस आसन को धीरे-धीरे करें तो रोगों में लाभ मिलता है।

 

योगासन एवं आसन के मुख्य प्रकार

योगासन एवं आसनयोगासन एवं आसन पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, योगमुद्रा, उत्थीत पद्म आसन, पाद प्रसारन आसन, द्विहस्त उत्थीत आसन, बकासन, कुर्म आसन, पाद ग्रीवा पश्चिमोत्तनासन, बध्दपद्मासन, सिंहासन, ध्रुवासन, जानुशिरासन, आकर्णधनुष्टंकारासन, बालासन, गोरक्षासन, पशुविश्रामासन, ब्रह्मचर्यासन, उल्लुक आसन, कुक्कुटासन, उत्तान कुक्कुटासन, चातक आसन, पर्वतासन, काक आसन, वातायनासन, पृष्ठ व्यायाम आसन-1, भैरवआसन,

चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं। योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है

आसन का उद्‍येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

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