ग्रीवासन

ग्रीवासन करने की विधि जब आप ग्रीवासन को करते हैं तो सबसे पहले सुखासन में बैठ जाएं। इसके लिए अपने दोनों पैरों के घुटनों को मोड़कर पलथी मार कर बैठ जाएं ओर अपने दोनों हाथों की हथेलियों को अपने घुटनों पर रख लें। फिर अपनी साँस को छोड़ते हुए अपनी गर्दन को आगे की ओर झुका लें और कोशिश करे की आप की ठुड्डी आप की छाती के साथ लग जाएं। सांस को भरते हुए अपनी गर्दन को पीछे की और ले जाएं फिर आकाश की तरफ देखें । इस स्तिथि में अपने कंधों को पीछे की और खीचें और गर्दन के पीछे के भाग में खिचाव को महसूस करवाएं। अब अपनी गर्दन को सीधा कर लें और साथ ही अपनी साँस को भी सामान्य कर लें । इसे आप 5 से 10 बार कर सकते हैं। इस का अभ्यास आप बिल्कुल धीरे -धीरे साँस की सजगता के साथ करें और साँस को छोड़ते हुए गर्दन को आगे झुकाएं और साँस को भरते हुए गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं । ग्रीवासन के लाभ ग्रीवासन को करने से हमें जो लाभ प्राप्त होते हैं वो इस प्रकार से हैं :- जब हम इस आसन को करते हैं तब हमारी गर्दन का सारा तनाव दूर हो जाता है। इसको करने से गर्दन की मांसपेशियों में अकड़न कम हो जाती है। इसको करने से सिर का भारीपन दूर हो जाता है।

योगासन एवं आसन के मुख्य प्रकार

योगासन एवं आसनयोगासन एवं आसन पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, योगमुद्रा, उत्थीत पद्म आसन, पाद प्रसारन आसन, द्विहस्त उत्थीत आसन, बकासन, कुर्म आसन, पाद ग्रीवा पश्चिमोत्तनासन, बध्दपद्मासन, सिंहासन, ध्रुवासन, जानुशिरासन, आकर्णधनुष्टंकारासन, बालासन, गोरक्षासन, पशुविश्रामासन, ब्रह्मचर्यासन, उल्लुक आसन, कुक्कुटासन, उत्तान कुक्कुटासन, चातक आसन, पर्वतासन, काक आसन, वातायनासन, पृष्ठ व्यायाम आसन-1, भैरवआसन,

चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं। योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है

आसन का उद्‍येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

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