योगमुद्रा

हजारों सालों से हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी द्वारा योग मुद्रा का अभ्यास किया जाता रहा है। अकसर ये योग मुद्रा बौद्ध भिक्षु द्वारा ध्यान करने के वक्त किया जाता था। अभ्यास : वज्रासन में बैठें। शरीर सीधा और हाथ जांघों पर है। पूरे शरीर को तनावहीन रखें।  पूरक करते हुए बाजुओं को सिर के ऊपर से फैलायें, फिर उनको पीठ के पीछे लायें और बाईं कलाई को दायें हाथ से पकड़ें।  रेचक करते हुए शरीर को कूल्हों से आगे झुकायें, पीठ को सीधा रखते हुए,जब तक कि मस्तक फर्श को न छू ले। नितम्ब एडियों पर रहेंगे।  सामान्य श्वास के साथ पूर्ण शरीर पर ध्यान दें और तनाव रहित रहें।  इस स्थिति में यथा संभव सुविधा से बने रहें।  धीरे-धीरे पूरक करते हुए शरीर को सीधा करें। इसी समय बाजुओं को सिर के ऊपर खींचें।  रेचक करते हुए प्रारम्भिक स्थिति में लौट आयें। लाभ : यह मन और नाडिय़ों को शान्त करता है, सिर की रक्तापूर्ति बढ़ाता है, चित्त एकाग्रता की योग्यता बढ़ाता है एवं पाचन क्रिया को उद्दीप्त करता है। सावधानी : उच्च रक्तचाप या चक्कर आने की स्थिति में इस आसन को न करें। आसन इन निम्नलिखित श्रेणियों में शामिल किया जाता है: सिर में रक्त संचार बढ़ाने के लिए आसन और व्यायाम पाचन सम्बन्धी समस्याओं को निराकरण के लिए आसन और व्यायाम स्नायु तंत्र को शांत एवं संतुलित करने के लिए आसन और व्यायाम एकाग्रचित्तता को बढ़ाना हेतु आसन और व्यायाम

योगासन एवं आसन के मुख्य प्रकार

योगासन एवं आसनयोगासन एवं आसन पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, योगमुद्रा, उत्थीत पद्म आसन, पाद प्रसारन आसन, द्विहस्त उत्थीत आसन, बकासन, कुर्म आसन, पाद ग्रीवा पश्चिमोत्तनासन, बध्दपद्मासन, सिंहासन, ध्रुवासन, जानुशिरासन, आकर्णधनुष्टंकारासन, बालासन, गोरक्षासन, पशुविश्रामासन, ब्रह्मचर्यासन, उल्लुक आसन, कुक्कुटासन, उत्तान कुक्कुटासन, चातक आसन, पर्वतासन, काक आसन, वातायनासन, पृष्ठ व्यायाम आसन-1, भैरवआसन,

चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं। योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है

आसन का उद्‍येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

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