हलासन

विधि । यहां पर हलासन के आसान एवं सरल विधि के बारे में बताया गया है। इसको समझकर आप इस आसन को ही ठीक तरह ही नहीं कर सकते हैं बल्कि ज़्यदा से ज़्यदा इसका लाभ उठा सकते हैं। पीठ के बल लेट जाएं और हाथों को जांघों के निकट टिका लें। अब आप धीरे-धीरे अपने पांवों को मोड़े बगैर पहले 30 डिग्री पर, फिर 60 डिग्री पर और उसके बाद 90 डिग्री पर उठाएं। सांस छोड़ते हुए पैरों को पीठ उठाते हुए सिर के पीछे लेकर जाएं और पैरों की अँगुलियों को जमीन से स्पर्श करायें। अब योग मुद्रा हलासन का रूप ले चूका है। धीरे धीरे सांस लें और धीरे धीरे सांस छोड़े। जहाँ तक संभव हो सके इस आसन को धारण करें। फिर धीरे धीरे मूल अवस्था में आएं। यह एक चक्र हुआ। इस तरह से आप 3 से 5 चक्र कर सकते हैं।

हलासन के लाभ

हलासन आसनों की दुनियां में बहुत ही महत्वपूर्ण योगाभ्यास है। यहां पर इसके कुछ फायदे के बारे में जिक्र किया जा रहा है।

  1. पेट की चर्बी कम करने में: इस आसन के नियमित अभ्यास से आप अपने पेट की चर्बी को कम कर सकते हैं। और अपने वजन पर भी काबू पा सकते हैं।
  2. बाल झड़ने के रोकने में: इस आसन के अभ्यास से खून का बहाव सिर के क्षेत्र में ज़्यदा होने लगता है और साथ ही साथ बालों को सही मात्रा में खनिज तत्व मिलने लगता है। जो बालों के सेहत के लिए अच्छा है।
  3. चेहरे की खूबसूरती के लिए: इसके रोज़ाना अभ्यास से आपके चेहरे में निखार आने लगता है।
  4. थयरॉइड के लिए: यह थयरॉइड एवं पारा थयरॉइड ग्रंथि के लिए बहुत ही मुफीद योगाभ्यास है। यह मेटाबोलिज्म को कण्ट्रोल करता है और शरीर के वजन पर नियंत्रित रखते हुए आपको बहुत सारी परेशानियों से बचाता है।
  5. कब्ज : यह अपच और कब्ज में लाभकारी है।
  6. मधुमेह: यह मधुमेह के लिए बहुत लाभकारी है।
  7. बवासीर: जो लोग बवासीर से ग्रस्त हैं उन्हें इस आसन का अभ्यास करनी चाहिए।
  8. गले की बीमारी: यह आपको गले के विकारों से बचाता है।
  9. सिर दर्द में: जिनको सिर दर्द की शिकायत हो उन्हें इस योग का अभ्यास करनी चाहिए।

शलभासन

शलभासन

शलभासन योग करते समय शरीर का आकार शलभ (Locust) कीट की तरह होने से, इसे शलभासन(Locust Pose) कहा जाता हैं। कमर और पीठ के मजबूत करता है और पाचन क्रिया को सुधारता है। शलभासन करने की प्रक्रिया और लाभ नीचे दिए गए हैं :

शलभासन करने की प्रक्रिया 

योगासन एवं आसन के मुख्य प्रकार

योगासन एवं आसनयोगासन एवं आसन पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, योगमुद्रा, उत्थीत पद्म आसन, पाद प्रसारन आसन, द्विहस्त उत्थीत आसन, बकासन, कुर्म आसन, पाद ग्रीवा पश्चिमोत्तनासन, बध्दपद्मासन, सिंहासन, ध्रुवासन, जानुशिरासन, आकर्णधनुष्टंकारासन, बालासन, गोरक्षासन, पशुविश्रामासन, ब्रह्मचर्यासन, उल्लुक आसन, कुक्कुटासन, उत्तान कुक्कुटासन, चातक आसन, पर्वतासन, काक आसन, वातायनासन, पृष्ठ व्यायाम आसन-1, भैरवआसन,

चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं। योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है

आसन का उद्‍येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

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