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IBM ने बनाई 2000 सूर्य की ऊर्जा इकट्ठा करने वाली तकनीक

एचसीपीवीटी सिस्टम पूरी दुनिया के लिए सतत ऊर्जा और फ्रेश वाटर (ताजा पानी) उपलब्ध करा सकता है।कैसा है एचसीपीवीटीएक सेंटीमीटर गुना एक सेंटीमीटर की चिप सूर्य प्रकाश के क्षेत्र (सनी रीजन) में प्रतिदिन आठ घंटे में औसतन 200-250 वाट ऊर्जा में बदल सकता है।
एचसीपीवीटी सिस्टम में 90 डिग्री सेल्सियस तापमान वाला पानी एक छिद्रयुक्त छन्नी (मेंब्रेन) डिस्टिलेशन सिस्टम से गुजरता है, जहां यह पानी वाष्पीकृत होकर नमक रहित होता है। इसके जरिए प्रतिदिन प्रति वर्ग मीटर रिसीवर एरिया से 30-40 लीटर पेयजल प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही प्रतिदिन दो किलोवाट बिजली भी प्राप्त की जा सकती है।
इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर एक छोटे शहर के पर्याप्त पानी उपलब्ध कराया जा सकता है। फोटो वोल्टिक चिप्सइस तकनीक में सूर्य की ऊर्जा सैकड़ों छोटे सोलर सेल सोखते हैं, जिन्हें फोटो वोल्टिक चिप्स कहा जाता है। ये ऊर्जा इकट्ठी करते हैं, जिसे पानी के सूक्ष्म प्रवाह के जरिए ठंडा किया जाता है। इस प्रकार यह सुरक्षित तरीके से बड़ी मात्रा में ऊर्जा को इकट्ठा कर पाता है।
क्या होंगे फायदे
ग्रीनपीस के अनुसार यह तकनीकी अक्षय ऊर्जा उद्योग में तीसरी बड़ी भूमिका निभा सकती है। 2009 में प्रकाशित एक शोध अध्ययन के मुताबिक सौर ऊर्जा न्यूनतम जगह में पूरी दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकता है। ग्रीनपीस के एक अनुमान के मुताबिक सहारा रेगिस्तान की महज दो फीसदी जमीन के इस्तेमाल से पूरी दुनिया में बिजली की आपूर्ति हो सकती है।
मौजूदा सोलर क्लेक्टर के साथ दिक्कतें ये हैं कि वे न्यूनतम मात्रा में ही ऊर्जा ले सकती हैं। इसका मतलब यह कि बहुत सारी उपयोगी उष्मा ऊर्जा बेकार चली जाती हैं। लेकिन इस नई तकनीकी से यह समस्या समाप्त हो जाएगी। सोलर पैनल के ज्यादा मात्रा में ऊर्जा इकट्ठा करने का खतरा यह है कि पैनल पिघल जाता है। लेकिन उस दिशा में लगातार हो रहे प्रयोग से स्थितियां बदल रही हैं।
इससे इतना तो तय है कि पुराने तकनीक को छोड़कर नई, स्वच्छ तथा हरित तकनीक अपनाने का समय आ गया है। इस परियोजना के लिए स्विस कमीशन फॉर टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन धन मुहैया करा रहा है। वह इस नई तकनीक को विकसित करने को तीन साल के लिए 24 लाख डॉलर दे रहा है। प्रोटोटाइप विकसित कर लिया गया और अब उसका परीक्षण चल रहा है।