शास्त्रीय नृत्य

काशी की गिरिजा

काशी की गिरिजा

उत्तर भारत कोकिला, गान शिरोमणि, संगीत शिरोमणि, गान सरस्वती जैसी उपाधियां उन्हें अल्पायु में ही मिल गयीं थीं. दुनिया उन्हें सुर साम्राज्ञी और अप्पा जी जैसे अनेक सम्मान सूचक शब्दों से नवाजती थी लेकिन बनारस आने के बाद वो सिर्फ गिरिजा होकर रह जाती थीं. उन्हें इस बात का गौरव सदा रहा कि वे उन कुछ गिने चुने लोगों में से थीं जिन्हें शास्त्रीय संगीत के उदभट विद्वान पंडित श्रीचन्द्र मिश्र का शिष्यत्व प्राप्त हुआ. Read More : काशी की गिरिजा about काशी की गिरिजा

लोक और शास्त्र के अन्तरालाप की देवी

अन्तरालाप की देवी

गिरिजा देवी को उस दौर की ख्यातिलब्ध महिला गायिकाओं ने भी खासा प्रभावित किया और वे बड़ी मोतीबाई, छोटी मोतीबाई, रसूलनबाई, रोशन आरा बेगम, मुश्तरी समेत विद्याधरी एवं मोगूबाई कुरडीकर आदि के रिकॉर्ड सुनती थी. लेकिन रसूलनबाई ने गिरिजादेवी को खासा प्रभावित किया. इनके अलावा वे सिद्धेश्वरी देवी को जीवन भर असली ठुमरी साम्राज्ञी मानती रहीं और उन्होंने इन सब विभूतियों से कुछ न कुछ सीखा. उनके व्यक्तित्व के उजास और अंतर्दृष्टि को ठाकुर जयदेव सिंह ने पहचाना और न सिर्फ उसे सराहा बल्कि उन्हें संगीत के कुछ गूढ़ विषयों से अवगत भी कराया. Read More : लोक और शास्त्र के अन्तरालाप की देवी about लोक और शास्त्र के अन्तरालाप की देवी

वेद में एक शब्द है समानिवोआकुति

वेद में एक शब्द है समानिवोआकुति

वेद में एक शब्द है समानिवोआकुति जिसका अर्थ है श्रोताओं को मन के अनुसार बांध कर सामान भाव से संतुष्ट कर देना. उन्होंने ठुमरी को नीचे से ऊपर पहुँचाया और अगर उन्हें संगीत का वाज्ञेयकार कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

"मुझे याद है 1972 में टाउनहॉल मैदान में एक कार्यक्रम के दौरान वो मंच पर आईं और उन्होंने राग यमन, मालकौंस के बाद कई बंदिशें सुनाई लेकिन उसके बाद जब ठुमरी शुरू हुई तो उपस्थित जनसमूह ने उन्हें कुछ देर और गाने का आग्रह किया. बड़े ही मीठे स्वर में उन्होंने कहा 'आप लोग जाए न देबा’ और वे एक घंटे तक अनवरत जाती रहीं. Read More : वेद में एक शब्द है समानिवोआकुति about वेद में एक शब्द है समानिवोआकुति

लोक कला की ध्वजवाहिका

लोक कला की ध्वजवाहिका

गिरिजा देवी ने दशकों तक न सिर्फ शास्त्रीय और उप शास्त्रीय गायन की हर उंचाई को छुआ बल्कि ठुमरी को और परिष्कृत करते हुए उसे नवीनतम प्रतिमान दिए. संगीत के प्रारंभिक गुरु उनके पिता रहे लेकिन बाद में उन्होंने पंडित सरजू प्रसाद मिश्र और पंडित महादेव मिश्र से भी शिक्षा ली, लेकिन उनकी प्रतिभा को विस्तार दिया पंडित श्रीचंद्र मिश्र ने. उन्होंने अपनी जीवन यात्रा में बनारस घराना और पूरब अंग की गायकी का अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व किया. Read More : लोक कला की ध्वजवाहिका about लोक कला की ध्वजवाहिका

शास्त्रीय संगीत क्या है

शास्त्रीय संगीत क्या है

भारतीय संगीत का अभिन्न अंग है भारतीय शास्त्रीय संगीत। आज से लगभग ३००० वर्ष पूर्व रचे गए वेदों को संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। ऐसा मानना है कि ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को संगीत वरदान में दिया था। चारों वेदों में, सामवेद के मंत्रों का उच्चारण उस समय के वैदिक सप्तक या समगान के अनुसार सातों स्वरों के प्रयोग के साथ किया जाता था। Read More : शास्त्रीय संगीत क्या है about शास्त्रीय संगीत क्या है

मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज

मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज

इस घराने के प्रतिनिधि गायक नाज़िर खान थे. इस घराने की गायकी में वैष्णव भक्ति का प्रभाव भी सुनने को मिलता है. इस घराने के गायक आम तौर पर अपनी गायकी खत्म करने से पहले एक भजन जरूर सुनाते हैं. विश्वविख्यात कलाकार पंडित जसराज इस घराने के मौजूदा प्रतिनिधि कलाकार हैं. नए कलाकारों में पंडित संजीव अभ्यंकर का नाम भी बड़े अदब से लिया जाता है.

भारतीय शास्त्रीय संगीत के विश्वविख्यात गायक, पण्डित जसराज ८० वर्ष के हो गए हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत को उनका योगदान पिछले छह दशकों से भी ज़्यादा समय से मिल रहा है। Read More : मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज about मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज

कर्नाटक संगीत

कर्नाटक संगीत

कर्नाटक संगीत या संस्कृत में कर्णाटक संगीतं भारत के शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली का नाम है, जो उत्तरी भारत की शैली हिन्दुस्तानी संगीत से काफी अलग है। कर्नाटक संगीत ज्यादातर भक्ति संगीत के रूप में होता है और ज्यादातर रचनाएँ हिन्दू देवी देवताओं को संबोधित होता है। इसके अलावा कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है। जैसा कि आमतौर पर भारतीय संगीत मे होता है, कर्नाटक संगीत के भी दो मुख्य तत्व राग और ताल होता है। कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को Read More : कर्नाटक संगीत about कर्नाटक संगीत

बेहद लोकप्रिय है शास्त्रीय गायकी का किराना घराना

बेहद लोकप्रिय है शास्त्रीय गायकी का किराना घराना

किराना घराने की बात करने से पहले आपको बताते चलें कि शास्त्रीय गायकी के भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने से ही थे.

किराना घराना का प्रतिनिधि गायक अब्दुल करीब खान को माना जाता है. महान कलाकार सवाई गंधर्व भी किराना घराने से ही थे. इस घराने की गायकी में मींड और गमक को वीणा के सुर की तरह पैदा किया जाता है. सुरों की साधना इस घराने के कलाकारों की पहचान है. Read More : बेहद लोकप्रिय है शास्त्रीय गायकी का किराना घराना about बेहद लोकप्रिय है शास्त्रीय गायकी का किराना घराना

कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप

कर्नाटक गायन शैली

वर्णम: इसके तीन मुख्य भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी के साथ की जा सकती है।

जावाली: यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफी तेज होती है।

तिल्लाना: उत्तरी भारत में प्रचलित तराना के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है। Read More : कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप about कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप

जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार

जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार

शास्त्रीय संगीत की दुनिया में मल्लिकार्जुन मंसूर, केसरबाई, किशोरी अमोनकर, श्रुति साडोलकर, पद्मा तलवलकर और अश्विनी भीड़े देशपांडे जैसे नामचीन कलाकारों की क्या कद है, ये बताने की जरूरत नहीं है. ये सभी कलाकार अतरौली घराने के हैं.

इस घराने की शुरुआत महान कलाकार अल्लादिया खान ने की थी. इस घराने की गायकी को कठिन इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इसमें वक्र स्वर समूहों को प्रस्तुत किया जाता है. आपको हाल ही में अपने लाखों चाहने वालों को अलविदा कह गईं किशोरी ताई की गायकी सुनाते हैं. Read More : जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार about जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार

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