ओशो – ध्यान में होने वाले अनुभव !

ओशो – ध्यान में होने

यही क्या कम है ? इस अंधेरे से भरी जिंदगी में अगर क्षणभर को भीतर रौशनी हो जाती है , कोई कम चमत्कार है ? क्योंकि वहां न तो बिजली का कोई कनेक्शन है , न वहां कोई ईंधन है , न वहा कोई तेल है । बिन बाती बिन तेल ! यह रोशनी चमत्कार है । जहां सदा से अन्धकार पड़ा रहा है , वहां अचानक ज्योति उठ आती है —यह चमत्कार है । प्रभु की अनुकंपा हो रही है । घन्यवाद करो ! धन्यवाद से और अनुकंपा बढ़ेगी ।

इस बात का सदा ख्याल में रखो : जितना तुम्हारा धन्यवाद गहरा होगा , उतनी ही तुम्हारी उपलब्धि बढ़ती चली जायेगी ।

क्योकि जो छोटी भेटे आती है , अगर उसको इंकार कर दिया तो बड़ी भेटे फिर नही आएगी । क्योकि तुम पात्र ही सिद्ध न हुए । तुम समझे ही नही । 
परमात्मा ने तुम्हारी तरफ डोरे फेकने फेकने शुरू किये है । आंनदित होओ !

नाच उठो ! मगन हो जाओ कि मुझ अपात्र को इतना भी हुआ , यही क्या कम है !  होना तो यह भी नही चाहिए था मगर फिर भी हुआ , तो उसकी अनुकंपा से हुआ होगा , मेरी पात्रता से नही ।

झुको ! उसके चरणों में सिर रख दो , और तब तुम पाओगे कि कुछ और होने लगा । 

धीरे – धीरे पहले शुक्ष्म ऐंद्रिक अनुभव होते है । अतीन्द्रिय अनुभव होने के पूर्व ; तीन तरह के अनुभव है जगत में —- स्थूल ऐंद्रिक अनुभव ….. तुमने एक सुंदर फूल को खिला देखा -उसकी सुवास तुम्हारे नासापुटों में भर गयी क्षण भर को सुख मालुम हुआ ।

तुमने चांद को आकाश में देखा , शीतल चांदनी तुम्हे नहा गयी तुम चांदनी में नहाकर प्रफुल्लित हो उठे , ताजे हो उठे , ठगे रह गये ।

चांद का सौंदर्य तुम्हे घेर लिया, स्पर्श किया । एक तरह का सुख मिला ये ऐंद्रिक सुख है । 

फिर दूसरे सुख होते है : सूक्ष्म ऐंद्रिक अनुभव आज्ञा चक्र में रौशनी हो गयी— इसका बाहर से कोई संबंध नही है , इसका भीतर से भी अभी कोई संबंध नही है । 

ये दोनों के मध्य के अनुभव है लेकिन सूचक है कि भीतर चलने लगे ।
जैसे पांच इंद्रियां स्थूल अनुभव लाती है , वैसे ही पांच तरह के शुक्ष्म अनुभव होते है । कभी तुम अचानक पाओगे कि भीतर अकारण ही सुवास हो गयी , जैसे हजारो फूल खिल गये हो !

तुम भरोसा ही नही कर पाओगे ।

चौककर देखोगे: कही कोई बाहर गंध नही , और भीतर गंध ही गंध है !

ऐसी गंध जैसे तुमने कभी नही जानी !
तुम्हारे भीतर का कस्तूरी का नाफा जैसे टूट गया ! कभी भीतर संगीत उठेगा , नाद उठेगा । अपूर्व संगीत तुम्हे भर लेगा ! लयबद्ध हो जाओगे !

और बाहर कुछ भी नही है । 

बाहर का संगीत सब फीका हो जाएगा , 

जब भीतर का नाद उठेगा ! बाहर की रोशनी अंधेरे जैसी मालुम पड़ेगी ,

जब भीतर की रोशनी का अनुभव होने लगेगा , मगर अभी यह मध्य की है , यह सूचक है : अब घर में जा सकते हो ।

जब पांचों इंद्रियों के अनुभव , शुक्ष्म अनुभव , तुम्हारे जीवन में प्रगट हो जाएंगे , एक दिन अचानक पाओगे कि स्वाद आ रहा है —-ऐसा स्वाद जैसा तुमने कभी नही जाना ! उस दिन रसना का नया अर्थ प्रगट होगा ।

जब ये अनुभव गहन हो जाएंगे , तब एक दिन तुम अतीन्द्रिय अनुभव में उतरोगे ।

स्थूल इंद्रिय से शुक्ष्म इंद्रिय , शुक्ष्म इंद्रिय से अतीन्द्रिय ।

जब अतीन्द्रिय अनुभव होगा , तभी तुम्हारे हृदय में होगा : हां , अब हुआ !परम् तृप्ति हो जाती है ।

*** झुक आयी बदरिया सावन की

     *** भगवान श्री रजनीश

 
 
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