स्वास्थ्य एवम् चिकित्सा विज्ञान

हवाख़ोर योगी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली

हवाख़ोर योगी विज्ञान के लिए अबूझ पहेली

वे न कुछ खाते हैं और न पीते हैं. सात दशकों से केवल हवा पर जीते हैं. गुजरात में मेहसाणा ज़िले के प्रहलाद जानी एक ऐसा चमत्कार बन गये हैं, जिसने विज्ञान को चौतरफ़ा चक्कर में डाल दिया है.

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स्मार्ट कंडोम वो बताएगा जो आप भी नहीं जानते

स्मार्ट कंडोम वो बताएगा जो आप भी नहीं जानते

स्मार्ट वॉचेज़ और गूगल ग्लास के बाद पूरी दुनिया में वियरेबल टेक्नोलॉजी को लेकर रुझान बढ़ रहा है. घड़ियों और चश्मों के बाद अब इस कड़ी में नए-नए प्रोडक्ट बाज़ार में उतारे जा रहे हैं और उसी कड़ी में एक नया प्रोडक्ट है स्मार्ट कंडोम. इसकी बिक्री के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू हो गई है.

इस स्मार्ट कंडोम को बनाने वाली कंपनी का दावा है कि ये ऐसे कई बारीक सवालों का जवाब भी देगा जिनके बारे में लोग अमूमन सोचते तक नहीं.

ब्रिटेन के एक ऑनलाइन स्टोर पर इसकी बिक्री की प्रक्रिया रजिस्ट्रेशन के ज़रिए शुरू की गई है. कंपनी ने इसे बाज़ार में पेश करने का दावा 2016 में ही किया था. Read More : स्मार्ट कंडोम वो बताएगा जो आप भी नहीं जानते about स्मार्ट कंडोम वो बताएगा जो आप भी नहीं जानते

चूहे बनेंगे सुपर जासूस, पहचानेंगे विस्फोटक

चूहे बनेंगे सुपर जासूस, पहचानेंगे विस्फोटक

सुपर स्निफर चूहों का प्रयोग अवैध रूप से तस्करी किए जा रहे ड्रग व विस्फोटकों को पहचानने में बेहतर तरीके से किया जा सकेगा
चूहे बनेंगे सुपर जासूस, पहचानेंगे विस्फोटक और ड्रग .सुपर स्निफर चूहों का प्रयोग अवैध रूप से तस्करी किए जा रहे ड्रग व विस्फोटकों को पहचानने में बेहतर तरीके से किया जा सकेगा 
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कृत्रिम अग्न्याशय 2018 तक उपलब्ध हो सकते हैं : वैज्ञानिक

कृत्रिम अग्न्याशय 2018 तक उपलब्ध हो सकते हैं : वैज्ञानिक

कृत्रिम अग्न्याशय 2018 तक उपलब्ध हो सकते हैं : वैज्ञानिक
मधुमेह के रोगियों के रक्त में ग्लूकोज का निरीक्षण करने वाले और शरीर में प्रवेश करने वाले इंसुलिन का स्तर स्वत: ही सही करने वाले कृत्रिम अग्नाशय 2018 तक उपलब्ध हो सकते हैं. Read More : कृत्रिम अग्न्याशय 2018 तक उपलब्ध हो सकते हैं : वैज्ञानिक about कृत्रिम अग्न्याशय 2018 तक उपलब्ध हो सकते हैं : वैज्ञानिक

डीएनए की दुनिया

डीएनए की दुनिया

पहले रिश्तों की पहचान चेहरा देखकर तो हर कोई कर सकता था। जैसे हम अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन के चेहरों में समानता देखते हैं। हेमा मालिनी और ईषा दियोल एक जैसी दिखती हैं या शर्मिला टैगोर और सैफ अली खान की शक्लों में एक जैसी झलक है। आप में से अधिकतर लोगों को पता होगा कि इन का आपस में एक रिश्ता है चाहे वो मां-बेटी का हो, मां-बेटे का या फिर बाप-बेटे का। इसीलिए इनके चेहरे एक-दूसरे से मिलते हैं। Read More : डीएनए की दुनिया about डीएनए की दुनिया

जी उठने की उम्मीद है लाशों को

जी उठने की उम्मीद है लाशों को

अमरीका में कैंसर की मरीज़ 14 साल की एक लड़की को इसकी इजाज़त मिली थी कि मौत के बाद उसके शरीर को संभाल कर रखा जाए. उस किशोरी की मौत अक्टूबर में हो गई.

शरीर को संभालकर रखने की इस विधि को 'क्रायोजेनिक्स' कहा जाता है. क्रायोजेनिक्स यह उम्मीद दिलाता है कि मरा हुआ इंसान सालों बाद जी उठेगा. हालांकि इसकी कोई गारंटी नहीं कि ऐसा होगा.

आख़िर यह कैसे होता है?

मौत के बाद जितनी जल्दी हो सके, लाश को ठंडा कर जमा दिया जाए ताकि उसकी कोशिकाएं, ख़ास कर मस्तिष्क की कोशिकाएं, ऑक्सीजन की कमी से टूट कर नष्ट न हो जाएं. Read More : जी उठने की उम्मीद है लाशों को about जी उठने की उम्मीद है लाशों को

चिकनगुनिया वाले मच्छर की कहानी

चिकनगुनिया वाले मच्छर की कहानी

चिकनगुनिया का चिकन या मुर्गी से कोई ताल्लुक नहीं है, इस बीमारी के नाम की कहानी काफ़ी दिलचस्प है.

इस बीमारी का पता पहली बार 1952 में अफ्रीका में चला था. मोज़ाम्बिक और तंजानिया के सीमावर्ती मकोंडे इलाक़े में इस बीमारी ने गंभीर रूप ले लिया था.

मच्छर के काटने से होने वाली इस बीमारी के वायरस की पहचान एक बीमार व्यक्ति के ख़ून के नमूने से हुई थी.

मकोंडे इलाक़े में स्वाहिली भाषा बोली जाती है जिसमें चिकनगुनिया का मतलब होता है-"अकड़े हुए आदमी की बीमारी." जिस व्यक्ति के ख़ून के नमूने से चिकनगुनिया वायरस की पहचान हुई थी, वह हड्डी के दर्द से बुरी तरह अकड़ गया था. Read More : चिकनगुनिया वाले मच्छर की कहानी about चिकनगुनिया वाले मच्छर की कहानी

आधे मस्तिष्क से भी इन्सान रह सकते हैं ज़िंदा !

आधे मस्तिष्क से भी इन्सान रह सकते हैं ज़िंदा !

सुनकर हैरत होगी लेकिन कुछ व्यक्तियों में पाया गया कि उनके दिमाग़ का एक बड़ा हिस्सा ग़ायब है और उन्हें कोई ख़ास बीमारी भी नहीं है. लेकिन ऐसा क्यों?

मस्तिष्क को मानव शरीर का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है और इसका भी अगर महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं हो तो क्या होगा?

टॉम स्टेफ़ोर्ड की पड़ताल

पहली बात तो यह है कि हमें अपने मस्तिष्क के कितने हिस्से की असल में ज़रूरत होती है?

पिछले कुछ महीनों में आई उन ख़बरों पर नज़र दौड़ाई जाए, जिनमें व्यक्ति के दिमाग़ का बड़ा हिस्सा ग़ायब था, तो कुछ चौंकाने वाली बात सामने आती है. Read More : आधे मस्तिष्क से भी इन्सान रह सकते हैं ज़िंदा ! about आधे मस्तिष्क से भी इन्सान रह सकते हैं ज़िंदा !

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