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डिफ्थीरिया के कारण, लक्षण और उपचार

- यह बीमारी कॉरीनेबैक्टेरियम डिफ्थीरिया बैक्टीरिया के इंफेक्शन होती है।
- इसके बैक्टीरिया टांसिल व श्वास नली को सबसे ज्यादा संक्रमित करते हैं।
- सांस लेने में दिक्कत, गर्दन में सूजन, बुखार, खांसी आदि हैं इसके लक्षण।
- बच्चे का टीकाकारण नियमित कराया जाये तो यह संक्रमण नहीं फैलता।
डिफ्थीरिया एक संक्रामक बीमारी है, यह संक्रमण से फैलती है, इसकी चपेट में ज्यादातर बच्चे आते हैं। इंफेक्शन से फैलने वाली यह बीमारी किसी भी आयुवर्ग को हो सकती है।
इस बीमारी के होने के बाद सांस लेने में परेशानी होती है। यदि कोई व्यक्ति इसके संपर्क में आता है तो उसे भी डिफ्थीरिया हो सकता है। यदि इसके लक्षणों को पहचानने के बाद यदि इसका उपचार न करायें तो यह पूरे शरीर में फैल जाता है। यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती है। इस लेख में इस बीमारी के बारे में विस्तार से जानिए।
डिफ्थीरिया क्या है
डिफ्थीरिया को गलघोंटू नाम से भी जाना जाता है। यह कॉरीनेबैक्टेरियम डिफ्थीरिया बैक्टीरिया के इंफेक्शन से होता है। इसके बैक्टीरिया टांसिल व श्वास नली को संक्रमित करता है। संक्रमण के कारण एक ऐसी झिल्ली बन जाती है, जिसके कारण सांस लेने में रुकावट पैदा होती है और कुछ मामलों में तो मौत भी हो जाती है। यह बीमारी बड़े लोगों की तुलना में बच्चों को अधिक होती है। इस बीमारी के होने पर गला सूखने लगता है, आवाज बदल जाती है, गले में जाल पड़ने के बाद सांस लेने में दिक्कत होती है। इलाज न कराने पर शरीर के अन्य अंगों में संक्रमण फैल जाता है। यदि इसके जीवाणु हृदय तक पहुंच जाये तो जान भी जा सकती है। डिफ्थीरिया से संक्रमित बच्चे के संपर्क में आने पर अन्य बच्चों को भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है।
डिफ्थीरिया के लक्षण
- इस बीमारी के लक्षण संक्रमण फैलने के दो से पांच दिनों में दिखाई देते हैं।
- डिफ्थीरिया होने पर सांस लेने में कठिनाई होती है।
- गर्दन में सूजन हो सकती है, यह लिम्फ नोड्स भी हो सकता है।
- बच्चे को ठंड लगती है, लेकिन यह कोल्ड से अलग होता है।
- संक्रमण फैलने के बाद हमेशा बुखार रहता है।
- खांसी आने लगती है, खांसते वक्त आवाज भी अजब हो जाती है।
- त्वचा का रंग नीला पड़ जाता है।
- संक्रमित बच्चे के गले में खराश की शिकायत हो जाती है।
- शरीर हमेशा बेचैन रहता है।
डिफ्थीरिया के कारण
- यह एक संक्रमण की बीमारी है जो इसके जीवाणु के संक्रमण से फैलती है।
- इसका जीवाणु पीडि़त व्यक्ति के मुंह, नाक और गले में रहते हैं।
- यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसने और छींकने से फैलता है।
- बारिश के मौसम में इसके जीवाणु सबसे अधिक फैलते हैं।
- यदि इसके इलाज में देरी हो जाये तो जीवाणु पूरे शरीर में फैल जाते हैं।
डिफ्थीरिया का उपचार
डिफ्थीरिया के मरीज को एंटी-टॉक्सिन्स दिया जाता है। यह टीका व्यक्ति को बांह में लगाया जाता है। एंटी-टॉक्सिन देने के बाद चिकित्सक एंटी-एलर्जी टेस्ट कर सकते हैं, इस टेस्ट में यह जांच की जाती है कि कहीं मरीज की त्वचा एंटी-टॉक्सिन के प्रति संवेदनशील तो नहीं। शुरूआत में डिफ्थीरिया के लिए दिये जाने वाले एंटी-टॉक्सिन की मात्रा कम होती है, लेकिन धीरे-धीरे इसकी मात्रा को बढ़ा सकते हैं।
दि बच्चे को नियमित टीके लगवाये जायें तो जान बच सकती है। नियमित टीकाकरण में डीपीटी (डिप्थीरिया, परटूसस काली खांसी और टिटनेस) का टीका लगाया जाता है। एक साल के बच्चे के डीपीटी के तीन टीके लगते हैं। इसके बाद डेढ़ साल पर चौथा टीका और चार साल की उम्र पर पांचवां टीका लगता है। टीकाकरण के बाद डिप्थीरिया होने की संभावना नहीं रहती है।