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डायबिटीज से आंखों को होता है डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा, जानिये इसके लक्षण
डायबिटीज के मरीजों की संख्या विश्वभर में तेजी से बढ़ रही है। डायबिटीज अगर ज्यादा बढ़ जाए तो ये खतरनाक बन जाता है। डायबिटीज के कारण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और इससे शरीर के कई अंगों पर भी प्रभाव पड़ता है। आंखों और किडनी पर इसका असर सबसे ज्यादा होता है। डायबिटीज में ब्लड शुगर का लेवल बढ़ता जाता है और इससे आंखों से जुड़ी परेशानियों का खतरा भी बढ़ता जाता है। आमतौर पर डायबिटीज बढ़ने के साथ-साथ रोगी के चश्मे का नंबर बढ़ता जाता है और कई बार तो ये स्तर अंधेपन तक पहुंच जाता है। इसी रोग को डायबिटीक रेटिनोपैथी कहते हैं।
क्या है डायबिटीक रेटिनोपैथी
डायबिटिक रेटिनोपैथी डायबिटीज के प्रभाव से होने वाली एक बीमारी है जिससे रोगी की आंखें प्रभावित होती हैं। आंखों के अंदर एक बेहद नाजुक पर्त होती है जिसे रेटिना कहते हैं। इसी रेटिना के कारण चीजें हमें दिखाई देती हैं। डायबिटीज के कारण रेटिना को रक्त पहुंचाने वाली महीन नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं जिससे रेटिना पर वस्तुओं का चित्र सही नहीं बन पाता या बिल्कुल नहीं बन पाता है। इसी स्थिति को डायबिटीक रेटिनोपैथी कहते हैं। अगर सही समय से इसका इलाज न किया जाए तो रोगी अंधेपन का शिकार हो सकता है। इसका खतरा 20 से 70 वर्ष के उम्र के लोगों को ज्यादा होता है। दुनिया में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण डायबिटिक रेटिनोपैथी ही है।
कैसे प्रभावित होती हैं आंखें
डायबिटीज दो तरह से लोगों को प्रभावित करता है। डायबिटीज में शरीर इंसुलिन नहीं बना पाता और टाइप 2 डायबिटीज में शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या बनाए गए इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इंसुलिन ही हमारी कोशिकाओं के सहारे ग्लूकोज को पूरे शरीर में पहुंचाता है। जब इंसुलिन नहीं बन पाता या कम बन पाता है तो ग्लूकोज कोशिकाओं में नहीं जा पाता और खून में घुलता रहता है। इसी कारण खून में शुगर का लेवल बढ़ता जाता है। यही खून शरीर के सभी हिस्सों तक पहुंचता है और इसी से शरीर के अंग काम कर पाते हैं। हाई शुगर के साथ रक्त जब लगातार फ्लो करता है तो इससे रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं और उनसे खून निकल सकता है। आंखों की रक्त नलिकाएं शरीर में सबसे ज्यादा नाजुक और महीन होती हैं इसलिए ये सबसे पहले प्रभावित होती हैं। इन नलिकाओं में खराबी के कारण अंगों तक पोषक तत्व और ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाते हैं और अंगों के काम में बाधा पहुंचती है। रक्त नलिकाओं के फटने से रिसने वाला रक्त कई बार रेटिना के आसपास इकट्ठा होता रहता है जिससे आंखों में ब्लाइंड स्पॉट भी बन सकता है।
डायबिटीक रेटिनोपैथी के लक्षण
- चश्मे का नम्बर बार-बार बदलना और लगातार बढ़ते जाना
- आंखों का बार-बार संक्रमित होना
- सुबह उठने के बाद कम दिखाई देना
- सफेद मोतियाबिंद या काला मोतियाबिंद
- आंखों में खून की शिराएं दिखना और खून जमा दिखना
- रेटिना से खून आना
- सरदर्द रहना या एकाएक आंखों की रोशनी कम हो जाना
- डायबिटीज टाइप 2 के मरीजों को मोतियाबिंद की संभावना ज्यादा होती है
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डायबिटीक रेटिनोपैथी से बचाव
डायबिटीज के ज्यादा बढ़ जाने से ही आंखों पर इसका प्रभाव शुरू होता है इसलिए इससे बचाव का एक ही तरीका है कि डायबिटीज का पता चलते ही ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कंट्रोल करें। इसके लिए चिकित्सक के बताए अनुसार परहेज करें और दवाएं लेते रहें। इसके अलावा डायबिटीज होने पर आपको साल में एक-दो बार आंखों की जांच करवाते रहना चाहिए जिससे आंखों पर अगर किसी तरह का प्रभाव शुरू हो जाए, तो उसका समय पर इलाज किया जा सके। अगर आपको डायबिटीज बहुत समय से हैं यानि 8-10 साल से है, तो आपको हर 3 महीने पर ही डायबिटीज की जांच करवानी चाहिए। इसके अलावा आंखों में किसी भी तरह का प्रभाव नजर आए जैसे आंखों में दर्द, धुंधला दिखना, अंधेरा लगना, कम दिखाई देना आदि- तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें और आंखों की जांच करवाएं।