द्विहस्त उत्थीत आसन

द्विहस्त उत्थीत आसन अभ्यास : दोनों टांगें इकट्ठी रखते हुए सीधे खड़े रहें और तनावहीन हो जायें। शरीर का भार दोनों पैरों पर समान रूप से है। सामान्य श्वास में पूरे शरीर पर चित्त एकाग्र करें। अब धीरे-धीरे अपना भार बायीं टांग पर ले आयें। दायीं टांग झुकायें और पैर का तलवा बायीं जांघ के अन्दर की तरफ रखें। हथेलियों को इकट्ठा छाती के सामने ले आयें। एक निश्चित बिन्दु पर चित्त एकाग्र करें और इसी स्थिति में बने रहें। अच्छे सन्तुलन की भावना के साथ आंखें बन्द की जा सकती हैं। आहिस्ता-आहिस्ता फिर से प्रारंभिक स्थिति में आ जायें और फिर इस व्यायाम को दूसरी टांग पर करें।

योगासन एवं आसन के मुख्य प्रकार

योगासन एवं आसनयोगासन एवं आसन पद्मासन, वज्रासन, सिद्धासन, मत्स्यासन, वक्रासन, अर्ध-मत्स्येन्द्रासन, पूर्ण मत्स्येन्द्रासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तनासन, ब्राह्म मुद्रा, उष्ट्रासन, योगमुद्रा, उत्थीत पद्म आसन, पाद प्रसारन आसन, द्विहस्त उत्थीत आसन, बकासन, कुर्म आसन, पाद ग्रीवा पश्चिमोत्तनासन, बध्दपद्मासन, सिंहासन, ध्रुवासन, जानुशिरासन, आकर्णधनुष्टंकारासन, बालासन, गोरक्षासन, पशुविश्रामासन, ब्रह्मचर्यासन, उल्लुक आसन, कुक्कुटासन, उत्तान कुक्कुटासन, चातक आसन, पर्वतासन, काक आसन, वातायनासन, पृष्ठ व्यायाम आसन-1, भैरवआसन,

चित्त को स्थिर रखने वाले तथा सुख देने वाले बैठने के प्रकार को आसन कहते हैं। आसन अनेक प्रकार के माने गए हैं। योग में यम और नियम के बाद आसन का तीसरा स्थान है

आसन का उद्‍येश्य : आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर के मल का नाश करना है। शरीर से मल या दूषित विकारों के नष्ट हो जाने से शरीर व मन में स्थिरता का अविर्भाव होता है। शांति और स्वास्थ्य लाभ मिलता है। अत: शरीर के स्वस्थ रहने पर मन और आत्मा में संतोष मिलता है।

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