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गेमिंग एडिक्शन का इलाज?

ये एक ऐसी बीमारी है जिसमें मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक दोनों की मदद लेनी पड़ती है. कई जानकार मानते हैं कि दोनों एक समय पर इलाज करें तो मरीज़ में फ़र्क जल्दी देखने को मिलता है.
लेकिन मनोवैज्ञनिक डॉक्टर जयंती इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखतीं. उनके मुताबिक कई मामले में साइको थेरेपी ही कारगर होती है, कई मामले में कॉग्नीटिव थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. बच्चों में प्ले थेरेपी से काम चल सकता है. ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज़ में एडिक्शन किस स्तर का है.
डॉक्टर बलहारा के मुताबिक इन दिनों तीन तरह के एडिक्शन ज़्यादा प्रचलित हैं - गेमिंग, इंटरनेट और गैम्बलिंग.
दिल्ली के एम्स में चलने वाले बिहेवियलर क्लीनिक में तीनों तरह के एडिक्शन का इलाज होता है. ये क्लीनिक हर शनिवार को सुबह नौ बजे से दोपहर के एक बजे तक चलती है. डॉक्टर हर हफ़्ते तक़रीबन पांच से सात मरीज़ों को देखते हैं और महीने में ऐसे तक़रीबन 30 मरीज़ सेंटर पर इलाज के लिए आते हैं.
मरीज़ों में से ज्यादातर लड़के या पुरूष होते हैं. लेकिन ऐसा नहीं कि लड़कियों में ये एडिक्शन नहीं है. आजकल लड़कियों और महिलाओं में भी इसकी संख्या बढ़ती जा रही है.
उनके मुताबिक, "कभी थेरेपी से काम चल जाता है तो कभी दवाइयों से और कभी दोनों तरह के इलाज साथ में देने पड़ते हैं."
आमतौर पर थेरेपी के लिए मनोवैज्ञिक के पास जाना पड़ता है और दवाइयों से इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास.
डब्ल्यूएचओ के आकंड़ो के मुताबिक इस बीमारी के शिकार 10 में से एक मरीज़ को अस्पताल में रह कर इलाज कराने की ज़रूरत पड़ सकती है.
आम तौर पर 6-8 हफ्तों में ये गेमिंग एडिक्शन की लत छूट सकती है.
डॉक्टर बलहारा के मुताबिक गेमिंग की आदत न पड़ने देना ही इससे बचने का सटीक उपाय है. गेमिंग एडिक्शन के बाद इलाज कराना ज़्यादा असरदार उपाय नहीं है.
तो अगली बार बच्चों को मोबाइल हाथ में देने से पहले या अपने फ़ोन पर भी गेम खेलने से पहले एक बार ठहर कर सोच ज़रूर लीजिएगा.